Monday 31 December 2018

बाग़ी भी आते-जाते रहे, नास्तिक ग्रुप भी चलता रहा...

ग्रुप से निकले दो लोगों के मैसेज, एक खुद निकले, दूसरे को निकालना पड़ा ; मैसेज मुझे भेजे गए हैं लेकि कुछ आरोप लगाए हैं तो सोचा आप सबको बता दूं---
(जवाब जितना ज़रुरी होगा, कमेंट्स् में लगा दूंगा।)

Praveen Kumar Pathak
मुझे दुख है कि आपका यह group नास्तिक The Atheist अभी परिपक्व नहीं हुआ है। जहाँ नफ़रत और अपशब्दों की भाषा में बात की जाए, ऐसे group से अलविदा।

Vhw Baagee
हहहह्हहहहहहाहा....ग्रोवर साहब कुछ भी हो आप भी पाखंडी ही निकले.....शब्दों को चाशनी में लपेट कर पेश करने वाले.....हहहहहहहहाहा.....एक बागी को ब्लोक करना आपकी मानसिकता यही साबित करती है.........शिकायत कमजोर लोग किया करते है, और बागी कहीं से भी कमजोर नहीं है, तुम्हे भी चापलूसों की फ़ौज पसंद है.......हहहहहहह्हहहहाहा...दिल पर ना ले.......बागी, तो बागी ही रहेगा.....एकदम बेबाकी से लिखने वाला.....जरूरत से ज्यादा सभ्य होने का दिखावा करने वाला भी समाज के लिए घातक होता है, और उसमे के तुम हो........बाय फिर मिलेंगे.....तुम भी बागी को याद रखोगे कि बागी भी टकरा था, जिसने मेरे जमीर को हिला कर रख दिया था.

Vhw Baagee
अगर हिम्मत हो तो बागी के इस मैसेज का जवाब जरुर देना.......हहहहहहहहहहहह्हा........बाकी मै जानता हूँ तुम मुर्दों में से हो. जो सिर्फ चापलूसों की फ़ौज को पसंद करता है.....मैंने आपके कई कमेन्ट और पोस्ट देखि है.....उनसे तो यही मालूम पड़ता है.........बाय मिस्टर ग्रोवर.

Sanjay Grover 
पाठक जी, ख़ुद ही छोड़कर गए। परिपक्वता की क्या बात करें, वे एक पुस्तकविशेष में से लेकर उद्धरण चेपे जा रहे थे जिनमें कोई तार्किकता और नयापन नहीं था, फिर भी एक बार भी उन्हें नहीं टोका, इसे अपरिपक्वता ही समझ लें। दूसरे, अगर उन्हें गैम्बलर स्मृति में नफ़रत दिखाई दे रही थी तो हज़ारों सालों से जो मनु-स्मृति चली आ रही है, उसपर भी कुछ कहना चाहिए था। मुझे नहीं मालूम गैम्बलर साहब कौन हैं, मगर उन्होंने सिर्फ़ दो-तीन किस्तें लगाईं थीं, वो बिलकुल उसी अंदाज़ में थी जैसा कि दीपा अग्रवाल ने मनु स्मृति के कुछ अंश लगाए थे। जब हज़ारों सालों से उस स्मृति से नफ़रत नहीं फ़ैली तो तीन दिन और तीन क़िस्तों से इस स्मृति से कैसे फैल जाएगी !

Sanjay Grover 
बाग़ी साहब या तो कुछ सुभाषित (सदा सत्य बोलो) टाइप के पोस्ट कर रहे थे। या फिर एक-दो नास्तिकता से संबंधित पोस्ट लगाईं तो उनमें तर्क कम ग़ाली-ग़लौच ज़्यादा थी। आयडेंटिटी छुपाकर ग़ाली-गलौच करना उन्हें बग़ावत लगती होगी। मुझे तो ठीक से मालूम भी नहीं कि बग़ाबत होती क्या है!? मैंने तो ग्रुप शुरु किया कि एक प्रयास करके देखना चाहिए, शायद हमारा प्रयास कुछ लोगों की सोच बदलने में काम आ जाए।

और यह झूठ है कि मैंने उन्हें ब्लॉक किया है। वैसे मैं कभी-कभी करता हूं, मगर इन्हे अभी तक नहीं किया था।

अगर किसीका उत्साह बढ़ाना चापलूसी है, तो चापलूसी की शुरुआत तो इस ग्रुप में मैंने की। सुधीर कुमार जाटव जी, किरन सागर सिंह जी और दूसरे लोगों की तारीफ़ मैंने की। आप चाहें तो मुझे इन सब का चमचा कह सकते हैं। वैसे न तो ये लोग किसी ऐसे पद या स्थिति में है और न मैं कि हम एक-दूसरे की चमचागिरी करें। अपनी आदत तो मुझे मालूम है, मैंने फ़ेसबुक पर जिन भी लोगों की अबतक तारीफ़ की है उनमें आपके या पारंपरिक नज़रिए से हैसियतदार सिर्फ़ उदयप्रकाश हैं। मेरी आदत है कि मैं किसीका पद, हैसियत, सामाजिक स्थिति, आर्थिक स्थिति, शिक्षा आदि देखे बिना सिर्फ़ विचार के और साहस के आधार पर किसीकी भी तारीफ़ करता हूं, प्रोत्साहन दे देता हूं और मैं यह करता रहूंगा। जहां तक मुझे याद है मुझसे काफ़ी छोटी उम्र के मेरे मित्र अंजुले के बेबाक़ स्टेटसों पर उनकी दो-तीन साल पहले ही अच्छी-ख़ासी तारीफ़ कर दी थी। आजकल वे ऐसा नहीं लिख रहे तो नहीं भी कर रहा।

फिर आप तो क्या ग़ज़ब के बाग़ी है, आप क्या किसी टुच्चे-मुच्चे ग्रुप के मोहताज़ हैं! इससे पहले भी तो कहीं क्रांति कर ही रहे होंगे! पूरा इंटरनेट और फ़ेसबुक खुला पड़ा है क्रांति वगैरह के लिए। लात मारिए हमें और खुले में शुरु हो जाईए।


-संजय ग्रोवर

(फ़ेसबुक, नास्तिक द अथीस्ट)

4 August 2013

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