Tuesday 1 January 2019

सारी दुनिया के मर्दों और स्त्रियों का ठेका !

अगर मुझसे कोई पूछे कि मर्द स्त्री से क्या चाहता है तो मुझे इस सवाल पर हैरानी होगी। मैं अकेला सारी दुनिया के मर्दों का ठेका कैसे ले सकता हूं !? जबकि मुझे मालूम है कि मैं ख़ुद ही स्त्रियों से सौ प्रतिशत वह नहीं चाहता जो कि अकसर क़िताबों में लिखा पाता हूं, लोगों से सुनता हूं, पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ता हूं, टीवी पर देखता हूं कि मर्द स्त्री से यह चाहता है। मैं बिलकुल भी नहीं चाहता कि स्त्री मेरे या किन्हीं सुनी-सुनाई मान्यताओं के दबाव में मेरी पसंद के अनुसार ढलने की कोशिश करे। तो मैं यह भी कैसे चाह सकता हूं कि कोई स्त्री मुझे अपनी तरह ढालने की कोशिश करे ? यह तो सीधे-सीधे दोहरे मानदण्ड हुए।

जो कोई भी किसी पर अपने मूल्य लादने की कोशिश करता है, मुझे नहीं लगता कि वह सचमुच किसीका सम्मान कर सकता है।

न तो बेवजह मैं किसी पुरुष का सम्मान कर सकता हूं न स्त्री का। और सम्मान न करने का मतलब अपमान करना नहीं है। अगर ऐसा मान लिया जाए तो फ़िर तो यह मतलब निकलता है कि दिन भर में हम स्त्रियों का अपमान ज़्यादा करते हैं सम्मान कम। क्योंकि सुबह जब हम घर से निकलते हैं तो रात तक हमें सड़क पर, दुकानों पर, दफ़तरों में.....पचासियों स्त्रियां मिलती हैं- क्या हम सबके पांव छूते हैं, सबको नमस्ते करते हैं, सबको वेलकम और हाउ डू यू डू करते हैं ? तो क्या इसका मतलब हम उनका अपमान कर रहे होते हैं ?

जो कोई भी किसी पर अपने मूल्य लादने की कोशिश करता है, मुझे नहीं लगता कि वह सचमुच किसीका सम्मान कर सकता है।

अभिनय और कर्मकांडों की बात अलग़ है। उनको करने और देखने के तो हम आदी हैं।

-संजय ग्रोवर
(फ़ेसबुक, नास्तिक द अथीस्ट)
25-07-2014

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