Monday 31 December 2018

यही सफ़लता है ?

अगर आपका साहित्य और पत्रकारिता में ज़रा-सी भी रुचि या लगाव रहा है तो यह कोई दूर की बात नहीं कि आपको भी किन्हीं ऐसे लोगों के उदाहरण याद आ जाएं जो किन्हीं नास्तिक और प्रगतिशील विचारधाराओं से जुड़े रहे और बाद में प्रचलित अर्थों में सफ़ल भी हो गए। किसीकी संपादकी अच्छी चल गई, कोई चैनल का मालिक हुआ, किसीकी वेबसाइट हिट हो गयी, किसीका और कुछ हो गया। मगर सोचने की बात यह है कि इस तथाकथित सफ़लता के बाद वे कर क्या रहे हैं !? कहीं वे अपनी पत्रिका में पंचांग तो नहीं छाप रहे ? कहीं वे अपने चैनल पर किसीको भगवान तो नहीं बना रहे ? कहीं वे अपने ही जैसे सफ़ल किसी अभिनेता से उसीके बताए सवाल तो नहीं पूछ रहे ? कहीं उन्होंने कमाई के चक्कर में झूठे भविष्यवक्ता तो नहीं बिठा रखे ?

सफ़लता मतलब अपना स्वभाव छोड़कर दूसरों जैसे हो जाना ? क्या सफ़लता आदमी को डरपोक बनाने के लिए होती है कि आदमी ख़ुलकर वह बात भी न कह सके जो वह तब ज़्यादा आसानी से कह सकता था जब असफ़ल था ? यह सफ़लता है ? क्या सफ़लता इस बात की हिम्मत देने के लिए होती है कि आप ख़ुलकर झूठ बोल सकें ?

आगे सोचने की बात यह है कि क्या यह सफ़लता है ? यही सफ़लता है ? सफ़लता मतलब अपना स्वभाव छोड़कर दूसरों जैसे हो जाना ? क्या सफ़लता आदमी को डरपोक बनाने के लिए होती है कि आदमी ख़ुलकर वह बात भी न कह सके जो वह तब ज़्यादा आसानी से कह सकता था जब असफ़ल था ? यह सफ़लता है ? क्या सफ़लता इस बात की हिम्मत देने के लिए होती है कि आप ख़ुलकर झूठ बोल सकें ?

अगर कोई कलका नास्तिक ‘सफ़ल’ होने के बाद आज किसी तथाकथित भगवान का प्रचार कर रहा है तो एक बात बिलकुल साफ़ है ; या तो वह नास्तिक था ही नहीं, किसी मजबूरी, किसी चालाकी के तहत हो गया था, या फ़िर अगर नास्तिक था तो सफ़ल होने के बाद या सफ़ल होते-होते, वह या तो डर गया या कहीं एडजस्ट कर गया। और इतना भी क्या एडजस्ट करना कि आप, आप ही न रहो !?

कुछ भी कर-कराके, जोड़-तोड़ करके, बस पैसे और नाम जोड़ लेना क्या वाक़ई बहुत बड़ी बात है ?

यह सफ़लता है कि असफ़लता !?

-संजय ग्रोवर

(फ़ेसबुक, नास्तिक द अथीस्ट)
1 December 2013

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