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Tuesday, 14 February 2017

दुआ का मतलब

‘मैं तुम्हारे लिया दुआ करता हूं’ का मतलब है-

1. कोई चमत्कार हो जाए और तुम्हारी सब समस्याएं ख़त्म हो जाएं...

2. दुआ दरअसल एक बहुत बड़ा काम है जो कि मैं तुम्हारे लिए करता हूं.....

3. मेरी सामाजिकता/ऊंगली की वजह से ही तो तुम पर मुसीबत/
बीमारी 
 आई है इसलिए मैं तुम्हारे लिए सिर्फ़ दुआ करता हूं, अगर कोई वास्तविेक काम किया तो कहीं तुम ठीक न हो जाओ।

4. दुआ मालिश/मक्खनबाज़ी/चमचागिरी/पॉलिश/भक्ति/फ़ैनियत का ही पर्यायवाची/समानार्थी शब्द है और मुझे बस यही आता है।

5. दुआ मेरे नर्सिंग होम का नाम है और मैं तुम्हे उसमें मुफ़्त में भर्ती करता हूं।

6. धरती पर तो अब कोई ढंग का आदमी(अगर कभी था) बचा नहीं इसलिए मैं आसमान की तरफ़ टकटकी लगाकर देखता हूं, शायद वहां से ही तुम्हारी समस्या का कोई हल टपक पड़े।

7. दरअसल मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं करना चाहता मगर अब सामने पड़ ही गए हो, फंस ही गया हूं, इमेज अच्छी बनाए रखनी है, सबसे पटाके रखनी है, दुनियादारी निभानी है तो कुछ तो बोलना ही था......

8. इसके अलावा कुछ और.....

-संजय ग्रोवर
14-02-2017

Wednesday, 21 December 2016

रंगों और प्रतीकों का चालू खेल-4

(पिछला हिस्सा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


सुना था, आज देख भी लिया कि एन डी टी वी ने गोरे रंग की क्रीम के विज्ञापनों पर बैन लगा दिया है। कुछ महीने पहले रामदेव और मैगी नूडल्स् के बीच इसी तरह का रिश्ता देखने में आया था। बाद में जो हुआ वह भी सामने ही है।

रामदेव तो ख़ैर रामदेव ही हैं, वे आधुनिकता के लिए जाने भी नहीं जाते मगर एन डी टी वी जैसे ‘मानवीय’ और ‘प्रगतिशील’ चैनल को गोरेपन की क्रीम के नुकसान समझने में इतने साल क्यों लग गए ? गोरेपन की क्रीम तो शराब भी नहीं है कि ग़रीब लोग उसे लगाकर अपने घर में मारपीट करते हों। इस क्रीम से ऐसा क्या नुकसान हो जाएगा ? सही बात यह है कि दहेज नहीं मिटाना, करवाचौथ बनाए रखना है, अपने रीति-रिवाजों पर उंगली नहीं उठानी, नास्तिकता और ईमानदारी पर बात करने में न जाने क्या ख़तरा है, सो सबसे आसान रास्ता यही है कि लोगों को प्रतीकबाज़ी और त्यौहारबाज़ी में उलझाए रखो। यहां याद रखने योग्य बात यह है कि लगभग दो महीने पहले एन डी टी वी पर एक दिन के बैन की घोषणा हुई थी, अभी बैन का दिन आया भी नहीं था कि कई भक्तों ने एन डी टी वी को शहीद घोषित कर डाला था, दूसरी तरफ़ कुछ लोगों ने इसकी विश्वसनीयता पर संदेह भी किया था। ज़ाहिर है कि एक दिन के बैन का अर्थ प्रतीकात्मक या अचानक मिली छुट्टी से ज़्यादा क्या हो सकता है।

सवाल यह भी है कि भारत में गोरे रंग की क्रीम कौन लोग ख़रीदते होंगे !? क्या गोरे लोग !? वे क्यों ख़रीदेंगे, वे तो पहले ही गोरे हैं! जब तक लगानेवालों की मानसिकता नहीं बदलेगी, बैन से क्या होगा ? वैसे भी बैन चाहे अभिव्यक्ति पर हो चाहे शराब-सिगरेट-गुटखे पर, यह कट्टरपंथ, पवित्रतावाद और एकतरफ़ा सोच के बारे में ही बताता है जिसे भारत के कई तथाकथित प्रगतिशील लोग आर एस एस की सोच मानते हैं।

बहरहाल जिस दिन एन डी टी वी पर फ़ायनली बैन लगना था, उसी दिन नोटबंदी की घोषणा हो गई। एन डी टी वी शहीद होते-होते रह गया। अभी-अभी आदरणीय राहुल गांधी जी ने इस संसद-सत्र की समाप्ति से एक-दो दिन पहले भूचाल लाने की बात की और दूसरे-तीसरे दिन उनका आदरणीय प्रधानमंत्री के साथ वार्ता करने का फ़ोटो आ गया। यह भी ख़बर आई कि राजनीतिक दलों को चंदा देने पर क्या-क्या छूटें मिल सकतीं हैं। आज कुछ डायरियों के हवाले से आदरणीय श्री मोदी पर आरोप लगाते आदरणीय श्री राहुल काफ़ी गोरे लग रहे थे। सिर्फ़ उनके गोरेपन के आधार पर उनके सही या ग़लत होने के बारे में कोई नतीजा निकाल लेना कोई समझदारी की बात नहीं लगती।

फिर से क्रीम पर आते हैं। क्या दुनिया में सभी गोरे, क्रीम की वजह से गोरे हैं ? क्या क्रीम लगाने से आदमी के अंदर कोई ऐसे परिवर्तन होते हैं कि वह अत्याचारी हो जाता है ? क्या क्रीम में कोई ऐसी चीज़ है जिससे आदमी को नशा हो जाता है ? मुझे याद आता है, बचपन में मैं काफ़ी दुबला-पतला था। कोई भी मेरे हाथ-पैर मरोड़ देता था। जिनके शरीर अच्छे थे, जो कसरत वग़ैरह करते थे उनमें से ज़्यादातर या तो दादागिरी करते थे, या उससे लड़कियों को प्रभावित करने में लगे रहते थे। मुझे तो एक भी याद नहीं आता जो लड़कियों की या ग़रीबों की रक्षा करता हो। अगर कलको मुझे कोई अधिकार/सत्ता/चैनल मिल जाए तो क्या यह ठीक होगा कि मैं सारे भारत के जिमों और पहलवानी पर बैन लगा दूं !?


(जारी)

-संजय ग्रोवर 
21-12-2016

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