आप भी देख ही रहे होंगे, एक न एक न्यूज़-चैनल दिखा रहा होगा कि किस तरह त्यौहारों पर हर जगह मिलावटी मिठाईयां मिलतीं हैं जो स्वास्थ्य के लिए बेहद ख़तरनाक़ होतीं हैं। यहां क़ाबिले-ग़ौर तथ्य यह है कि सभी त्यौहार धर्म से जुड़े हैं, दुकानदार और सप्लाईकर्त्ता भी धार्मिक ही होते होंगे। मैं सोचता हूं कि किसी दुकानदार का कोई रिश्तेदार/चाचा/मामा/भतीजा/दोस्त उसकी दुकान से मिठाई लेने आ जाए तो क्या वह यह कहेगा कि भई, तुम मेरे रिश्तेदार हो, दोस्त हो, मैं किसी भी हालत में तुम्हे यह मिठाई नहीं दे सकता, तुम किसी और दुकान से ले लो।
सवाल उठता है कि धर्म आदमी को आखि़र कैसे प्रभावित करता है!?
या क्या बनाके छोड़ देता है ?
और जो क़रीबियों की चिंता न कर पाए, आम ग्राहकों की चिंता कर पाएगा, मुमकिन नहीं लगता।
सवाल उठता है कि धर्म आदमी को आखि़र कैसे प्रभावित करता है!?
या क्या बनाके छोड़ देता है ?
-संजय ग्रोवर
(फ़ेसबुक, नास्तिक द अथीस्ट ग्रुप)
2 November 2013
सवाल उठता है कि धर्म आदमी को आखि़र कैसे प्रभावित करता है!?
या क्या बनाके छोड़ देता है ?
और जो क़रीबियों की चिंता न कर पाए, आम ग्राहकों की चिंता कर पाएगा, मुमकिन नहीं लगता।
सवाल उठता है कि धर्म आदमी को आखि़र कैसे प्रभावित करता है!?
या क्या बनाके छोड़ देता है ?
-संजय ग्रोवर
(फ़ेसबुक, नास्तिक द अथीस्ट ग्रुप)
2 November 2013