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Friday, 4 December 2015

उस ज़हर का क्या करें.....

ग़ज़ल

इस सदी की आस्था को देखकर मैं डर गया
बच्चे प्यासे मर गए और दूध पी पत्थर गया

माना अमृत हो गया दो दिन समंदर का बदन
उस ज़हर का क्या करें जो आदमी में भर गया

हिंदू भी नाराज़ मुझसे और मुसलमां भी ख़फ़ा
होके इंसा यार मेरे! जीतेजी मैं मर गया

दर्द को इतना जिया कि दर्द मुझसे डर गया
और फिर हंस कर के बोला, यार मैं तो मर गया

-संजय ग्रोवर