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Sunday, 4 June 2017

बच्चे की मासूमियत और बड़ों का बचपना

‘अगर आपको भगवान के होने का सबूत चाहिए तो इस वीडियो को देखिए’
ऐसा ही कुछ फ़ेसबुक पर लगे एक वीडियो के ऊपर स्टेटस में लिखा था, नीचे वीडियो में एक छोटा बच्चा सड़क पर अपना किनारा छोड़कर डिवाइडर की तरफ़ भाग पड़ता है। गाड़ियां धीरे-धीरे चल रहीं हैं, शायद लाल बत्ती अभी-अभी हरी हुई है। बच्चा अचानक गिर पड़ता है या लेट जाता है। एक कार उसके ऊपर से आर-पार निकल जाती है। नीचे बच्चा सुरक्षित है। वीडियो बनाने या लगानेवाले के अनुसार यह भगवान के होने का सबूत है। धार्मिक लोगों के मुख से इस तरह की घटनाएं और उनपर इस तरह के उनके रिएक्शन मैंने अकसर देखे-सुने हैं, ज़रुर आपने भी सुने होंगे।

तथाकथित धार्मिकों के अनुसार तो जो भी होता है, भगवान की मर्ज़ी से होता है। तो फिर जब भगवान ने उसे बचाना ही था तो पहले उसे भगाया क्यों ? भगवान क्या बच्चे के साथ सांप-सीढ़ी खेल रहा था ? यह तथाकथित भगवान तो बच्चों का माईबाप है। कोई मां-बाप पने बच्चों के साथ इस तरह टाइमपास करते हैं क्या ?

यह बच्चा बच गया तो यह भगवान के होने का सबूत है। और जो बच्चे मर जाते हैं वो किस बात का सबूत है ? ज़ाहिर है कि वो फिर भगवान के न होने का सबूत है। और ध्यान रहे कि सड़को-फुटपाथों पर, घरों-अस्पतालों में बहुत-सारे बच्चे मरते हैं। इसका मतलब है कि न होने का सबूत बहुत बड़ा है।

आगे ज़रा कल्पना कीजिए कि कोई बच्चा या व्यक्ति किसी दुर्घटना में अपना नीचे का हिस्सा तुड़ा बैठे और ऊपर-ऊपर से बच जाए तो यह किस बात का सबूत होगा ? कि भगवान आधा है और आधा नहीं है ? आधा टूटा है, आधा साबुत है ?   

इससे ज़रा और आगे सोचते हैं-यह बच्चा या व्यक्ति आज तो बच गया इसलिए आज भगवान भी बच गया लेकिन आगे की क्या गारंटी है ? क्या आगे इसके साथ कोई दुर्घटना नहीं होगी ? क्या यह अमर हो गया ? दुर्घटना ना भी हो तो स्वाभाविक मौत तो सभी मरते हैं। फिर वो किस बात का सबूत होगा ? कि भगवान कभी-कभार छोटी-मोटी दुर्घटना में/से तो बच या बचा सकता है मगर उसके आगे उसके भी बस का कुछ नहीं है।

और अगर लोगों के मरने से ही भगवान के होने, न होने का फ़ैसला होना है तो आए दिन हज़ारों लोग मरते हैं। फिर तो समझिए कि भगवान भी एक-एक दिन में कई-कई बार मरता है। आए दिन होनेवाली लाखों घटनाओं में से एक घटना आपने उठा ली, वह भी ऐसी घटना जो सालों में एकाध बार होती है, और उसे भगवान के होने का सबूत बता दिया। बाक़ी लाखों घटनाएं-बलात्कार, चोरी, बेईमानी, भ्रष्टाचार, तकनीक का दुरुपयोग, दुर्घटनाएं, कुपोषण से होनेवाली बच्चों की मौतें.....उनके बारे में क्या ख़्याल है ? वो किसकी कारिस्तानी है ?

आप यह भी बताएं कि इतना अहंकार आपमें आया कहां से कि भगवान के होने के सबूत आप देते फिरते हैं। भगवान क्या आपसे कमज़ोर है ? वह अपने होने के सबूत ख़ुद क्यों नहीं देता ?

सबसे मज़े की बात तो यह है कि जब हम आपसे कहते हैं कि अपने पिताजी से मिलवाओ तो आप सीधा ही मिलवा देते हो लेकिन इतने बड़े (आप ही के हिसाब से) सर्वशक्तिमान, सर्वविद्यमान भगवान की बात चलती है तो आप सबूत दिखाना शुरु कर देते हो !?

अरे किसी दिन सीधे ही मिलवा दो। सारा झंझट ही ख़त्म हो जाएगा।

-संजय ग्रोवर
04-06-2017

Monday, 31 August 2015

भगवान है तो उसके पास जाते क्यों नहीं !?

व्यंग्य

मेरे लिए यह मानना मुश्क़िल है कि लोग भगवान और स्वर्ग इत्यादि में विश्वास करते हैं। 

लगभग हर तथाकथित धार्मिक आदमी कहता है कि आखि़रकार तो हमें भगवान के पास जाना है। हर कोई बताता है कि स्वर्ग में बढ़िया शराब है, जिसे सुंदर महिलाएं सर्व करतीं हैं। वहां कोई जादुई पेड़ है जो इच्छाएं पूरी करता है। वहां रहने का कोई किराया नहीं लगता, मकान या प्लॉट नहीं ख़रीदना पड़ता, वहां जाने तक के सफ़र में भी कोई पैसे नहीं लगते। इसके अलावा मैं देखता हूं, आप भी देखते होंगे कि तथाकथित धार्मिक आदमी जो भी करता है, स्वर्ग और भगवान को ध्यान में रखकर करता है।

लेकिन मुझे एक बात क़तई समझ में नहीं आती, जो आपकी निगाह में दुनिया की सबसे सुंदर जगह है, जहां जाने के लिए ही आप सब कुछ कर रहे हैं, वहां जाने की जल्दी किसीको भी नहीं है!? क्यों !? इतनी अच्छी जगह को छोड़कर आप इस सड़ी-गली-पापी दुनिया में क्यों रह रहे हैं !? क्या मजबूरी है !? भगवान के पास जाना तो बहुत ही आसान है। कोई किराया भी नहीं लगता। थोड़ी-सी नींद की गोलियां, एक रस्सी का फंदा, एक माचिस की तीली, एक ऊंची छत......ऐसा कोई एक विकल्प चाहिए बस। और तो कुछ करना नहीं है।

स्वर्ग से अच्छी कॉलोनी कहां मिलेगी ?भगवान जैसा सर्वगुणसंपन्न, सर्वशक्तिमान पड़ोसी भी कहां मिलेगा ? मगर किसीको जल्दी नहीं है !? आदमी को जनता फ्लैट छोड़कर एल आई जी लेने का मन आ जाए, तब तो वह उधार ले-लेकर भी वहां पहुंच जाता है। मगर जो फ़ाइनल डेस्टीनेशन है, वहां पहुंचने की कोई जल्दी नहीं !? अस्सी-अस्सी साल तक यहीं पड़े हैं !! दवाईयां खा-खाके खाट से चिपटे हैं !! टट्टी-पेशाब भी बिस्तर में ही किए जा रहे हैं। दूसरे साफ़ कर रहे हैं। इंजेक्शन और ड्रिप घुसा-घुसाके किसी तरह ज़िंदा हैं। मगर दुनिया छोड़ने को राजी नहीं है !! अरे भई, जाओ अपनी पसंदीदा जगह, जल्दी से जल्दी जाओ। कौन रोक रहा है ? कोई रोके तो शिकायत करो। तमाम एन जी ओ हैं, समाजसेवी संस्थाएं हैं, दानी सज्जन हैं.....सब आपकी मदद करेंगे। वे भी तो वहीं जाना चाहते हैं। सब पीछे-पीछे आएंगे। आप शुरुआत तो करो अच्छे काम की।

क्यों दोस्तों की, परिचितों की, रिश्तेदारों की चिंता करते हो ? एक बार ख़ुद पहुंच जाओ, फिर उन्हें भी बुला लेना। इतनी अच्छी जगह हर किसीको जाना चाहिए, जल्दी से जल्दी जाना चाहिए। 

मगर ये तथाकथित धार्मिक लोग ख़ुद तो जाते नहीं, दूसरों को भेजना चाहते हैं। वो भी उनको जो भगवान-स्वर्ग-नरक को मानते ही नहीं। अरे भाई अगर तुम्हे वाक़ई भगवान और स्वर्ग में विश्वास है तो पहले ख़ुद जाना चाहिए। तभी तो लोगों को विश्वास आएगा। तब वे ख़ुद ही पीछे-पीछे आएंगे।

जिस दिन मैं तथाकथित धार्मिक लोगों को किरोसिन तेल, नींद की गोलियों, रस्सी के फंदे, चाकू या ब्लेड वगैरह के साथ एडवांस में डैथ सर्टीफिकेट के लिए एप्लाई करते देखूंगा, मुझे भी थोड़ा-थोड़ा विश्वास आएगा कि वाक़ई तथाकथित धार्मिक लोग स्वर्ग और भगवान इत्यादि में विश्वास करते हैं।

-संजय ग्रोवर
01-09-2015