Thursday 13 August 2015

रख़ैल और पुरुष

रख़ैल नामक शब्द से यूं तो सिर्फ़ स्त्री को ही ‘सम्मानित’ किया गया है, जिसका अर्थ मोटे तौर पर यह है कि जो स्त्री पैसे या अन्य ज़रुरतों के लिए शादी के बंधन के बिना ही ज़ाहिरा तौर पर या छुपे तौर पर ख़ुदको किसी पुरुष के हाथ सौंप देतीं है-या तो जीवन-भर के लिए या पुरुष का मन भर जाने तक। यहां एक सवाल यह भी है कि क्या शादी कर लेने भर से स्त्री की स्थिति भिन्न हो जाती है ?

असली सवाल यह भी है कि शारीरिक या भौतिक अर्थों में रखैल होना ज़्यादा बुरी स्थिति है या मानसिक या वैचारिक रुप से !? शारीरिक रुप से आप फिर भी मुक्त हो सकते हैं मगर आप एक बार मानसिक ग़ुलाम हो गए तो शारीरिक रुप से आप मुक्त दिखाई भी दें मगर मानसिक ग़ुलामी, धरती के किसी भी कोने पर आप चले जाएं, आसानी से आपका पीछा नहीं छोड़ेगी। 

मेरी समझ में जिन पुरुषों के अपने कोई विचार नहीं, जो दूसरों का कहा करते रहे, जो दूसरों की तरह जीते रहे, जिन्होंने अपना दिमाग़ किसी मूरत, किसी क़िताब, किसी गुरु, किसी कथित धर्म, किसी कथित जाति, किसी कथित दर्शन, किसी कथित वाद के पास गिरवी रख दिया है, जिनकी पूरी जीवन शैली, पूरी जीवन दृष्टि में अपना कुछ भी नहीं है, उन्हें स्त्री को रखैल कहने से पहले एक बार अपने बारे में भी सोचना चाहिए।

-संजय ग्रोवर
06-09-2014

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