Thursday 1 June 2017

क्या मोर को यह मालूम है !

व्यंग्य

क्या मोर को यह बात मालूम है कि वह सैक्स नहीं करता इसलिए राष्ट्रीय पक्षी है ? या वह राष्ट्रीय पक्षी है इसलिए सैक्स नहीं करता या कर सकता ? क्या पता पहले करता हो मगर बाद में राष्ट्रीय होने के चक्कर में छोड़ दिया हो !? पदों-पुरस्कारों-उपाधियों आदि के चक्कर में लोग क्या-क्या नहीं छोड़ देते ? लोग तो जल्दी-जल्दी मशहूर होने के  चक्कर में अजब-ग़ज़ब बयान देने के लिए बुद्धि तक छोड़ देते हैं। फिर मोर तो पढ़ा-लिखा भी नहीं है, इंसान भी नहीं है। कपड़े-वपड़े तो उसने पहले ही छोड़ रखे हैं, मगर सैक्स नहीं करता! क्यों नहीं करता! क्या किसी न्यायप्रेमी ने ऑर्डर निकाला है ? मोर को डर क्या है !? बाक़ी सब पशु-पक्षी तो करते हैं, पशु-पक्षी तो क्या, मैंने तो सुना है आदमी भी करता है!

लेकिन शर्मा जी ने यह पता कैसे लगाया होगा कि मोर सैक्स नहीं करता ? क्या मोर ने उन्हें बताया ? मोरों से उनका संवाद कबसे चल रहा है, बताना चाहिए, देश को फ़ायदा होगा। देश को पता चलेगा कि जिन भाषाओं के लिए हम लड़-भिड़ रहे हैं, उनके अलावा भी मर-मिटने के लिए कई नई भाषाएं पैदा हो चुकीं हैं। या फिर शर्मा जी ने दो-चार महीने पेड़ों के बीच जंगल में जाकर पता लगाया होगा जैसे डिस्कवरी चैनल या एनीमल प्लैनेट वाले कई महीने पेड़ों पर लटक कर सांप के बच्चे होने या शेर के गाय वगैरह मारने के वीडियो बना लाते हैं। शेर राष्ट्रीय पशु है मगर उसे नहीं मालूम कि किसको मारना है किसको छोड़ना है। क्या मोर को मालूम होगा कि उसे सैक्स करना है या नहीं करना ? बहरहाल, मोर सैक्स नहीं करता, इसका कोई वीडियो या अन्य कोई सबूत हो तो देश को दिखाना चाहिए, देश देखना चाहता है।

हमारे घर के पीछे एक लंबा-चौड़ा, पेड़-पौधों से भरा, दाल मिल था जहां मोर अकसर आ जाते थे। कई बार हमारी छत पर पंख भी छोड़ जाते थे। पंख सुंदर होते थे, हम रख लेते थे। लेकिन इस सबके बावज़ूद मोरों की जनसंख्या मुझे इतनी ज़्यादा कभी नहीं लगी कि यह ख़्याल भी आए कि इनके बच्चे किसी करामात से पैदा हो जाते होंगे। हां, मक्खी, मच्छर, तिलचट्टे, चींटी, आदमी आदि के बारे में यह बात कही जाए तो फिर भी समझ में आती है क्योंकि इन सब की ही जनसंख्या इतनी तेज़ी से बढ़ती है कि लगता है बढ़ने के लिए इन्हें कुछ करना ही नहीं पड़ता, बिना सोचे-समझे पड़े-पड़े बढ़ते रहते हैं।


मेरे माथे और सिर के बीच में कोई छेद नहीं था इसलिए सिर पर मोरपंख लगाने का आयडिया मुझे नहीं आया वरना बचपने में लगा भी सकता था। लेकिन कृष्ण नाम का एक ऐसा पौराणिक शख़्स सुनने में आता है जो अपने मुकुट में मोरपंख धारण करता था। यह शख़्स मोरपंख मोर से पूछकर लाता होगा इसपर विश्वास करना ज़रा मुश्क़िल है क्योंकि इस चरित्र से संबंधित प्रचलित कहानियों में बताया गया है कि पहले यह मक्खन चुराता रहा बाद में औरतों के कपड़े चुराने लगा। इस शख़्स की कहानियों में सोलह हज़ार रानियां/पत्नियां थीं। उस दिन मैं हिसाब लगाने बैठा कि सब पत्नियों से एक-एक दिन भी मिला जाए तो कितना वक़्त चाहिए ? मैंने सोलह हज़ार में तीन सौ पैंसठ का भाग दे दिया। उत्तर आया लगभग चौवालीस साल। इससे पहले पंद्रह-सोलह साल बच्चे को जवान होते-होते तक संभलने के लिए चाहिए, तो हो गए लगभग साठ साल। फिर जमुना के तट पर गोपियां अलग से आतीं थीं। 15-20 साल उनके लिए भी चाहिए। इसके अलावा दोस्तों-रिश्तेदारों को आपस में लड़वाना था, महाभारत कराना था, 18 दिन उसके लिए भी चाहिए थे। कुछ काम न करते हुए भी यह आदमी कितना कामकाजी रहा होगा। अब पता लगा है कि यह आदमी गोपियों के बीच में रोता था। हमने तो सुना है कि बांसुरी से उनका मन बहलाता था। रोता था तो फिर हो सकता है जमुना उसके आंसुओं से ही पैदा हुई हो। कृष्ण के बच्चे कितने थे इसकी जानकारी मुझे नहीं है। एक हाथ में सुदर्शन चक्र/चक्कर, दूसरे में बांसुरी, तीसरे, आंखों से रोना........धुंधलाहट में काफ़ी बैलेंस बनाना पड़ता होगा। फिर कैलेंडर में मैंने देखा कि एक पैर पर खड़े होना........करामात जैसी बात है भले इससे होता कुछ भी न हो। 

हम लोगों को ऐसे चमत्कार काफ़ी पसंद हैं जो बेवजह, बेमतलब, बेनतीजा ही होते रहते हैं। 


-संजय ग्रोवर
01-06-2017


No comments:

Post a Comment