Sunday 20 November 2016

वाह रे मर्द!

व्यंग्य

अपने यहां मर्दानगी का शौक़ काफ़ी पुराना लगता है। यह बिलकुल असाध्य रोग की तरह लगता है क्योंकि 2011 से 2016 तक में भी मर्दानगी से संबंधित तरह-तरह की कहानियां, विज्ञापन, कविताएं आदि देखने को मिलते रहते हैं।

मैं अलग से किसी विज्ञापन या कविता (जहां तक तर्कहीनता की बात है कई बार ये दोनों  बिलकुल एक जैसे लगते हैं) का ज़िक़्र नहीं करना चाहता क्योंकि कई लोग इसमें भी अपनी प्रसिद्धि, महानता और शहादत आदि देखने या चाहने लगते हैं। कई लोग मर्दानगी की महानता का चर्चा अकसर औरतों और परिवार की सुरक्षा के संदर्भ में करते हैं। यह बात अलग है कि अपने यहां ऐसे मर्दों का आंकड़ा जुटाना मुश्क़िल है जो वास्तव में अपनी भी सुरक्षा ठीक से कर पाते हों। ज़्यादातर मर्द पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्यों के नाम पर जगह-जगह, तरह-तरह से एडजस्ट ही करते पकड़े जा सकते हैं।

चलिए, हम थोड़ी देर को मान लेते हैं कि मर्द वह है जो परिवार की सुरक्षा करता है। अब सवाल यह है कि जिसका परिवार नहीं वो क्या ख़ाली अपनी मर्दानगी साबित करने के परिवार पैदा करे ? उसके परिवार का खर्चा कौन उठाएगा ? अगर वह परिवार की आड़ में बेईमानी से एडजस्ट न करना चाहे तो ? देश में ऐसे बहुत सारे मर्द मशहूर होते रहे हैं जिनके परिवार नहीं थे। उनका अब आप क्या करेंगे ? उनको क्या बोलेंगे ?

आप परिवार की रक्षा किससे करेंगे ? आप शरीफ़ हैं तो दूसरे क्या बदमाश हैं ? उनके भी तो परिवार हैं। वे भी अपने परिवार की रक्षा के लिए तरह-तरह के क़रतब कर रहे हैं। कौन तय करेगा कि किसके क़रतब जायज़ हैं, किसके नाजायज़ ? बलात्कार कांड हुआ और एक-एक आदमी बोला कि हम बलात्कार के खि़लाफ़ हैं, औरतों का सम्मान करते हैं। भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चला, हर कोई समर्थन करने लगा। नोट बंद हुए, हर कोई बोला हम ब्लैक मनी के खि़लाफ़ हैं। यहां इतने तो अच्छे लोग रहते हैं, फिर रक्षा किससे करनी है ?

आप परिवार की रक्षा कितने वक़्त तक करेंगे ? आप कितने साल तक जिएंगे ? उसके बाद परिवार की रक्षा कौन करेगा ? आपके ‘परिवार की रक्षा’ के शौक़ के लिए परिवार के सभी सदस्यों का 60-60 साल तक बच्चा बना रहना ज़रुरी है क्या ? एक आपकी ईगो की ख़ातिर इतने-इतने लोग क़ुर्बान हो जाएं ? इससे मिलेगा क्या ?


अगर मर्द वह है जो परिवार और महिलाओं की रक्षा करता है तो स्पष्ट है कि परिवार का मुखिया, परिवार का बड़ा, परिवार में शासक भी वही है। यह किसका फ़ायदा है ? परिवार और महिलाओं का या स्वयं मर्द का ? नये डब्बे में पुराने कार्यक्रम कब तक चलाते रहोगे महा-पुरुष !?

आप अगर महिलाओं और परिवार की रक्षा करेंगे तो भगवान क्या करेगा ? यूं तो लोग कहते हैं कि सब कुछ वही करता है मगर आप जैसों की बातें पढ़ें-सुनें तो लगता है कि वह कुछ भी नहीं करता। अगर वह किसी परिवार की सुरक्षा नहीं करना चाहता तो आप क्या उसके खि़लाफ़ जाके रक्षा कर पाएंगे ?



क्यों न परिवार को और औरतों अपनी रक्षा ख़ुद करने दें क्योंकि जिनसे उनकी रक्षा आप करना चाहते हैं वे सब भी पारिवारिक लोग हैं। वे भी अपने:परिवार की सुरक्षा’ की ख़ातिर उन्हें आपसे दूर रखने में लग गए तो ?
 

बेईमानों से हमारा एडजस्टमेंट है, रिश्वतखोरों का हमारे घरों में आना-जाना है, छेड़नेवाले हमारे दूर-पास के संबंधी हैं, दहेजखोर कट्टरपंथी, प्रगतिशीलों-सा भेस बनाकर, हमारे दोस्त-यार हैं।  जिनसे रक्षा करनी है, सब तो हमारे चिर-परिचित हैं। फिर रक्षा किससे करनी है ?  फिर रक्षा बस विज्ञापन में, नाटक में, कविता में, कहानी में, फ़िल्म में, मंच पर ही संभव है।
 

वो तो कई सालों से चल रही है।

वैसे किसीकी रक्षा करने के लिए मर्द होना ज़रुरी क्यों है ? क्या इंसान किसीकी रक्षा नहीं कर सकता ?


-संजय ग्रोवर
20-11-2016

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