Monday 14 December 2015

भगवान के दूत

व्यंग्य

राजधानी का एक संपन्न इलाक़ा जहां कुछ ग़रीबों को भी ‘बिज़नेस’ करने की अनुमति है। बिज़नेस मायने ग़ुब्बारे बेचना, मिट्टी के सस्ते खि़लौने बेचना, भीख मांगना या कुछ ऐसे ही और छोटे-मोटे काम करना।

एक बड़ी और सुंदर गाड़ी। एक हृष्ट-पुष्ट लड़का उतरता है। उसके हाथ में 500-500 रु. के कुछ नोट हैं। उतरकर फ़ुटपाथ पर जाता है जहां एक फ़टेहाल पगली खड़ी आसमान से बातें कर रही है।
‘आप भगवान को मानतीं हैं?’ हृष्ट-पुष्ट लड़का पूछता है।
‘.............’
‘‘मुझे भगवान ने भेजा है, यह लो‘‘, वह 500रु. का एक नोट पगली के हाथ में थमा देता है।
पगली ख़ुशी से नाचने लगती है। उसके कपड़े फ़टे हैं, फ़ुटपाथ पर, और उससे पहले न जाने क्या-क्या सहती आई है मगर नाच रही है। पगली जो है।
हृष्ट-पुष्ट लड़का मन ही मन नाच रहा है। इसने पगली जैसा कुछ नहीं सहा, यूं भी अकसर नाचता ही रहता है। दोनों भगवान को मानते हैं।

यह लड़का एक ग़रीब ग़ुब्बारेवाले के पास पहुंचता है-
‘‘आप भगवान को मानते हैं?’’
‘‘हां, मानता हूं, बहुत मानता हूं।’’
‘‘यह लो 500रु., मुझे भगवान ने भेजा है।’’
ग़ुब्बारेवाला पल-भर सकुचाता है, फिर स्वीकृति के भाव से नोट ग्रहण करता है।

हृष्ट-पुष्ट लड़का इसी तरह कुछ और नोट भगवान को माननेवाले ग़रीबों को बांटता है।

एक फ़टेहाल लड़का अख़बार बेच रहा है।
हृष्ट-लड़का उसके भी पास पहुंच गया है-
‘‘आप भगवान को मानते हैं?’’
अख़बारवाला लड़का उसका मुंह देखने लगता है।
हृष्ट-पुष्ट थोड़ी अड़चन में है। पहली बार उसे अपना सवाल दोहराना पड़ रहा है।
‘‘आप भगवान को मानते हैं ?’’
‘‘.....मानता हूं...तो ?’’
‘‘यह लीजिए, मुझे भगवान ने भेजा है।’’
‘‘ओह! अच्छा! भगवान ने आपको क्यों भेजा!? वह ख़ुद क्यों नहीं आया ?’’
‘‘.............’’
‘‘मुझे भगवान से मिलना है...सुनिए...रुकिए तो सही...मुझे भगवान से मिलना है..’’
‘‘भगवान हर जगह ख़ुद नहीं जा सकते, उन्होंने तुम्हारे लिए मुझे भेजा है।’’
‘‘क्यों, तुम्हारे पास आ सकते हैं तो मेरे पास क्यों नहीं आ सकते?’’
‘‘देखिए आप यह हज़ार रुपए रखिए, मुझे औरों के पास भी जाना है, मैं चलता हूं...’’
‘‘नहीं...मैं आपको ऐसे नहीं जाने दूंगा....यहां राजधानी में ऐसे भी फ्रॉड बहुत होते हैं...आपको सबूत देना होगा कि आपको भगवान ने भेजा है...’’
‘‘..........मगर मैं ऐसा क्यों करुंगा...मैं कुछ दे ही रहा हूं, कुछ ले तो नहीं रहा?’’
‘‘क्या पता तुमने कहीं छुपा कैमरा लगा रखा हो ? बाद में इसे इधर-उधर अपलोड करके हीरो बनते फिरोगे। अपने-आपको श्रेष्ठ साबित करोगे। लड़कियों को इम्प्रैस करोगे। पांच-दस हज़ार रुपए ख़र्च करना तुम जैसों के लिए मामूली बात है......’’
‘‘......................’’
‘‘तुम तो एकदम चुप हो गए?’’
‘‘आप मेरा हाथ छोड़िए....देखिए हम सब एक ही भगवान के बनाए हुए हैं.....उन्होंने मुझे देने के लिए चुना है और तुम्हे लेने के लिए......’’
‘‘पर मुझे तो भगवान बताने आया नहीं कि उसने मुझे पैसे लेने के लिए चुना है !?’’
‘‘...........’’
‘‘तुम जवाब क्यों नहीं दे रहे? ठहरो! तुम्हारी शक़्ल तो उस आदमी से मिलती है जो टीवी पर कह रहा था कि कोई नेता अगर ग़रीब जनता से रुपए या दारु देकर वोट मांगे तो बिलकुल मत देना......कमाल है! अगर तुम वही हो तो ख़ुद कितना गिरा हुआ काम कर रहे हो!?’’
‘‘देखिए......’’
‘‘मुझे भगवान से पूछना है कि इन हज़ार रुपयों से मेरा क्या काम हो सकता है, बाक़ी सारी ज़िंदगी मैं क्या करुंगा? सुनो, तुमने कहा हम दोनों तो एक ही भगवान के बनाए हुए हैं। ऐसा करो, तुम अपना गाड़ी और घर मुझे दे दो, मैं वहां रहूंगा, तुम यहां अख़बार बेचो......’’
‘‘नहीं, मैं अख़बार नहीं बेच सकता, मुझे अपना काम पूरा करना है......’’
‘‘लेकिन मुझसे भगवान ने कहा है कि जो लड़का तुम्हे पांच सौ रुपए देने आएगा उसके गाड़ी और घर तुम ले लेना, और उसे यहां अख़बार बेचने को खड़ा कर देना......’’
‘‘..........’’
‘‘कमाल है! तुम कुछ बोल ही नहीं रहे....मैं तो तुम्हारे भगवान की इच्छा मान रहा हूं, तुम मेरे भगवान की इच्छा क्यों नहीं मान रहे......मैं पुलिस को बुलाऊं क्या?’’
‘‘................................’’

अख़बार वाले लड़के ने हृष्ट-पुष्ट लड़के का हाथ पकड़ा हुआ है और बात-चीत जारी है.......

(मजबूर लोगों में पैसे बांटकर भगवान को सिद्ध करने की चेष्टा करने का एक हास्यास्पद वीडियो देखने के बाद लिखा गया)

-संजय ग्रोवर
23-09-2014

('पागलख़ाना' से साभार)


1 comment:

  1. सच क्या क्या प्रपंच करते है लोग ..

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