Monday 22 June 2015

बेटा, थोड़ा-सा धन्यवाद होगा क्या ?

लोग अकसर कहते पाए जाते हैं कि सूरज का धन्यवाद करो, तुम्हे धूप देता है ; भगवान की पूजा करो, उसने तुम्हे बनाया है, मां-बाप का अहसान मानो कि वे तुम्हे इस ख़ूबसूरत दुनिया में लाए.....

सुनने में ये बातें बहुत भली लगतीं हैं, मगर इनके पीछे का सच क्या है ?
सूरज क्या किसी व्यक्ति या व्यक्तिविशेष के लिए धूप देता है ? अगर ऐसा होता तो सूरज बंद घरों की दीवारें भेदकर बीमार बूढ़ों और कमज़ोर बच्चों तक न पहुंच जाता ? सूरज तो उन जंगलों और पहाड़ों पर भी धूप बरसाता है जहां आदमी के बच्चे का नामो-निशान तक नहीं पाया जाता! वहां उसको ‘थैंक्यू अंकल’ बोलनेवाला या आर्चीज़ के ग्रीटिंग कार्ड भेजनेवाला कौन बैठा है ? और हम समझ रहे हैं कि सूरज हमारे थोथे कर्मकांडों और खोखली औपचारिकताओं की वजह से ही रोज़ाना ढाई टन प्रति गांव के हिसाब से धूप सप्लाई कर रहा है। 

हम बड़े मज़ेदार लोग हैं। 

मां-बाप का, भगवान का अहसान मानो कि वे तुम्हे दुनिया में लाए! 

मानने में हम काफ़ी होशियार हैं, क्या-क्या नहीं माने बैठे! पर यह भी तो सोचने की बात है कि मां-बाप बच्चों को दुनिया में किसलिए लाते हैं ? क्या बच्चों के लिए ? क़तई नहीं ? कोई बच्चा किन्हीं मां-बाप के पास अर्ज़ी नहीं डालता कि हे मेरे होनेवाले माता-पिता, मिस्टर एंड मिसेज़ अल्फ़ा-बीटा, आपसे अनुरोध है कि कृपया मुझे जल्दी से जल्दी इस दुनिया में लाएं। 


जो है ही नहीं उसकी न तो मर्ज़ी का कोई स्कोप है न अर्ज़ी की कोई संभावना।

बच्चे की चाहत बड़ों को होती है। कोई दादी, पोते (आजकल कहीं-कहीं पोती ) का मुंह देखना चाहती है तो कोई नाना, नातिन से खेलना चाहते हैं। किसीको वंश बढ़ाने की चिंता है तो किसीको बच्चा किसी बाबा को देना है। बच्चे न हुए जैसे रेवड़ियां हो गईं। होनेवाले बच्चे को बेचारे को मालूम ही नहीं है कि मुझे लेकर क्या-क्या योजनाएं बनाई जा चुकी हैं। मालूम पड़ जाए तो हो सकता है बहुत-से बच्चे पिछली गली से ही निकल लिया करें कि अंकल, हमीं पर सारी नींव जमाई जा रही है और हमसे पूछा तक नहीं!! अपने पास रखो ऐसी तानाशाह दुनिया! हम जहां हैं, वहीं ठीक हैं। नहीं हैं, तो नहीं ठीक हैं। 

कुछ बच्चे, सुना है, लापरवाही में ही पैदा हो जाते हैं। अहसान तो उनपर भी उतना ही लादा जाता होगा। कौन उन बच्चों से कहता होगा कि बेटे तुम तो यूंही भूल-चूक लेनी-देनी के खाते में चढ़ गए, हमसे ग़लती हुई, हमें माफ़ करो। सुना है क्या कभी ? उल्टे उनसे भी जमकर काम लिया जाता होगा।


कई लोग बच्चे इसलिए पैदा करके बैठ जाते हैं वे हमारा नाम करेंगे। नाम अव्वल तो होता नहीं, हो जाए तो भी उससे कुछ होता नहीं। आप ही बताईए, भारत में किसीको राजेश खन्ना के मम्मी-पापा का नाम मालूम है क्या ? कितने लोग दिलीप कुमार के माता-पिता का नाम जानते हैं ? चलो रतन टाटा के मम्मी-पापा का नाम ही बता दो ज़रा ?

क्या हुआ ?


नाम से होना बस यही है कि जुगाड़ से किसीको अस्पताल में बैड दिलवा दोगे। सिफ़ारिश से किसीकी नौकरी लगवा दोगे। किसीका ट्रांसफ़र रुकवा दोगे। यानि सारे काम इम्प्रोपर चैनल से करोगे। क़ायदे से कुछ नहीं करोगे। देश में सही सभ्यता हो, ईमानदारी हो तो जेनुइन काम तो सबके यूंही हो जाया करेंगे, किसी जुगाड़ की, सिफ़ारिश की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी। मगर ऐसा हुआ तो फिर आपको कौन पूछेगा, आपका नाम कैसे होगा!? इसलिए भैया अपने चार अक्षर के नाम के लिए देश में गंदगी मेंटेन करो, और करो, करते ही रहो।

पिछले बरसों तक तो कई लोगों को यही डर लगा रहता था कि शादी के दस-बारह महीने में बच्चा न हुआ तो कहीं कोई नामर्द न कह दे! अब बताईए, मर्दानगी का ढोल किसीको पीटना है और भुगतेगा कोई और। यह पवित्र भावना अभी भी बहुत जगह जारी होगी। यहां तो प्रगतिशील भी तरह-तरह की परंपराएं पकड़े बैठे हैं फिर दूसरों का क्या दोष!

वैसे धन्यवाद करने को दुनिया में और भी बहुत लोग हैं-कूड़ा उठानेवाले हैं जो एक हफ़्ते न आएं तो हमारी सारी प्लानिंग बिगड़ जाती है। रिक्शेवाले हैं जो हमसे उम्र में बड़े हों तो भी हमें बाऊजी-बाऊजी कहते हैं। वैज्ञानिक हैं जो घरबार छोड़कर, दिन-रात प्रयोगशालाओं में बैठे-बैठे हमारे लिए सुविधाएं पैदा करते हैं। बच्चों का भी धन्यवाद किया जा सकता है कि हम तुम्हारी मर्ज़ी पूछे बिना तुम्हे इस दुनिया में ले आए और तुमने बुरा न माना, जो भी हमने कहा मानते चले गए, कभी कोई सवाल न उठाया।


चांद-सूरज को हम धन्यवाद न भी दे  तो उनका कुछ बिगड़ नहीं जाएगा। वे हमारे धन्यवाद से नहीं चलते।


-संजय ग्रोवर
23-06-2015

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