सोचिए ज़रा-वह कैसा आदमी रहा होगा जिसने-
पहले आदमी को छोटा-बड़ा, ऊंचा-नीचा बनाया। और तय कर दिया कि ऊंचा मैं हूं।
फ़िर कहा कि चूंकि मैं बड़ा हूं इसलिए खेल के सारे नियम मैं तय करुंगा। फ़िर उसने कहा कि आसमान में कोई ऐसी शक्ति है जिसका धरती पर प्रतिनिधित्व मैं करता हूं। फ़िर उसने एक काल्पनिक शक्ति के आधार पर वास्तविक दुनिया के लिए नियम बना दिए। वे सारे नियम उसे फ़ायदा पहुंचाते थे, उसे कुछ भी करने की आज़ादी थी। वही काम जब वह ख़ुलेआम करता तो वह काम पवित्र कहलाता, दूसरा उस काम का नाम भी लेता तो भ्रष्टाचारी और अपराधी ठहरा दिया जाता।
उसके बनाए सारे नियम उसके बनाए छोटे या नीचे लोगों पर लागू होते थे, ख़ुद पर कोई नियम लागू नहीं होता था। जब-जब उसके बनाए छोटे या नीचे लोग शक़ करते कि यार हैं तो हम भी बिलकुल इसीके जैसे, बल्कि कई मामलों में इससे भी बेहतर हैं तो वह भांप जाता और नक़ली प्रतियोगिताएं खड़ी करता। उन प्रतियोगिताओं में सारे नियम-क़ानून उसके होते, जगह उसकी होती, दर्शक और अनुयाई उसके होते, तालियों से लेकर जैजैकार तक उसीके प्रभाव, दबाव और मान्यताओं के तहत होती, ईमानदारियों और बेईमानियों की परिभाषाएं उसीकी तय की हुई होतीं, प्रतियोगियों का खाना-पीना और ट्रेनिंग भी उसीकी सुविधानुसार होतीं, न्यायकर्त्ता, रैफ़्री या अम्पायर उसीके मनोनुकूल, उसीके द्वारा नियुक्त किए हुए होते, कई बार तो वह जिससे लड़ रहा होता वह भी उसीका आदमी होता। कई बार, जब वह ख़ुद मैदान में न उतरता, सभी प्रतियोगी उसीके तय किए होते.....
.....फ़िर भी कसर रह जाती तो आधी रात जाकर लड़ाई के मैदान के गड़ढों और उभारों को अपने अनुकूल कर या करवा लेता....
अंततः हर बार ‘जीत’ जाता.......
मेरे लिए इसमें सबसे हैरानी की बात यह है कि डरे हुए, उसकी मान्यताओं के मारे हुए, उसके भय से भकुआए हुए, उसके प्रभाव में पगलाए हुए, उसकी जोड़-गांठ से अनजान लोग उसे विजेता(!) मान लें, यह तो समझ में आता है मगर अपनी सारी असलियत जानने के बावजूद भी वह ख़ुद कैसे ख़ुदको विजेता(?) मान सकता था !!??
दरअसल कितना खोखला, पाखंडी, घटिया, कमज़ोर और दयनीय आदमी होगा यह !!
-संजय ग्रोवर
26-05-2014
(यह पोस्ट काल्पनिक है ठीक वैसे ही जैसे किसी तथाकथित दर्शन के मुताबिक जगत मिथ्या है)
पहले आदमी को छोटा-बड़ा, ऊंचा-नीचा बनाया। और तय कर दिया कि ऊंचा मैं हूं।
फ़िर कहा कि चूंकि मैं बड़ा हूं इसलिए खेल के सारे नियम मैं तय करुंगा। फ़िर उसने कहा कि आसमान में कोई ऐसी शक्ति है जिसका धरती पर प्रतिनिधित्व मैं करता हूं। फ़िर उसने एक काल्पनिक शक्ति के आधार पर वास्तविक दुनिया के लिए नियम बना दिए। वे सारे नियम उसे फ़ायदा पहुंचाते थे, उसे कुछ भी करने की आज़ादी थी। वही काम जब वह ख़ुलेआम करता तो वह काम पवित्र कहलाता, दूसरा उस काम का नाम भी लेता तो भ्रष्टाचारी और अपराधी ठहरा दिया जाता।
उसके बनाए सारे नियम उसके बनाए छोटे या नीचे लोगों पर लागू होते थे, ख़ुद पर कोई नियम लागू नहीं होता था। जब-जब उसके बनाए छोटे या नीचे लोग शक़ करते कि यार हैं तो हम भी बिलकुल इसीके जैसे, बल्कि कई मामलों में इससे भी बेहतर हैं तो वह भांप जाता और नक़ली प्रतियोगिताएं खड़ी करता। उन प्रतियोगिताओं में सारे नियम-क़ानून उसके होते, जगह उसकी होती, दर्शक और अनुयाई उसके होते, तालियों से लेकर जैजैकार तक उसीके प्रभाव, दबाव और मान्यताओं के तहत होती, ईमानदारियों और बेईमानियों की परिभाषाएं उसीकी तय की हुई होतीं, प्रतियोगियों का खाना-पीना और ट्रेनिंग भी उसीकी सुविधानुसार होतीं, न्यायकर्त्ता, रैफ़्री या अम्पायर उसीके मनोनुकूल, उसीके द्वारा नियुक्त किए हुए होते, कई बार तो वह जिससे लड़ रहा होता वह भी उसीका आदमी होता। कई बार, जब वह ख़ुद मैदान में न उतरता, सभी प्रतियोगी उसीके तय किए होते.....
.....फ़िर भी कसर रह जाती तो आधी रात जाकर लड़ाई के मैदान के गड़ढों और उभारों को अपने अनुकूल कर या करवा लेता....
अंततः हर बार ‘जीत’ जाता.......
मेरे लिए इसमें सबसे हैरानी की बात यह है कि डरे हुए, उसकी मान्यताओं के मारे हुए, उसके भय से भकुआए हुए, उसके प्रभाव में पगलाए हुए, उसकी जोड़-गांठ से अनजान लोग उसे विजेता(!) मान लें, यह तो समझ में आता है मगर अपनी सारी असलियत जानने के बावजूद भी वह ख़ुद कैसे ख़ुदको विजेता(?) मान सकता था !!??
दरअसल कितना खोखला, पाखंडी, घटिया, कमज़ोर और दयनीय आदमी होगा यह !!
-संजय ग्रोवर
26-05-2014
(यह पोस्ट काल्पनिक है ठीक वैसे ही जैसे किसी तथाकथित दर्शन के मुताबिक जगत मिथ्या है)
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