Saturday 4 July 2015

नमस्कार में इंसानियत कम गणित ज़्यादा !

समाज में हम कई लोगों से पैसा देकर सेवाएं लेते हैं।

मगर उनका सम्मान करने या न करने का ढंग हमारा अलग-अलग होता है।

आखि़र उसका आधार क्या होता है-उम्र, पेशा, पैसा, ईमानदारी, जाति, पद, डर, लालच या कुछ और ?

क्या हम रिक्शेवाले को नमस्कार करते हैं ? कई बार वह हमसे उम्र में बड़ा होता है। कभी-कभी हम एक ही आदमी के रिक्शे में रोज़ाना बैठते हैं।
क्या हम अपने मोची को नमस्कार करते हैं ?
क्या हम अपने सफ़ाईवाले को नमस्कार करते हैं ?
क्या हम अपने मजदूर को नमस्कार करते हैं ?

हम डॉक्टर को नमस्कार करते हैं।
हम अपने वक़ील को नमस्कार करते हैं।
हम सरकारी ऑफ़ीसर और बाबू को नमस्कार करते हैं।
हम मशहूर लेखक-समीक्षक को नमस्कार करते हैं.....

इसका पैमाना क्या होता है ?
उदाहरण के लिए डॉक्टर को ही लीजिए, हम उसे नमस्कार क्यों करते हैं-

1. सभी डॉक्टर उम्र में हमसे बड़े होते हैं।

2. कोई डॉक्टर किसीसे पैसा नहीं लेता।

3. सभी डॉक्टर महान होते हैं।

4. डॉक्टर चमत्कार करते हैं। हम चमत्कृत हो जाते हैं और हमारे हाथ अपनेआप जुड़ जाते हैं, मुंह से नमस्ते ख़ुदबख़ुद निकल जाती है।

5. हम डॉक्टर से डरते हैं। हमारी या हमारे किसी रिश्तेदार/परिचित की बीमारी के वक्त हमारी सबसे क़ीमती चीज़, हमारी जान डॉक्टर के हाथ में होती है। अगर डॉक्टर नाराज़ हो गया तो हमारा कितना भी बड़ा नुकसान हो सकता है।

6. डॉक्टर बहुत पढ़ा-लिखा होता है और पढ़ा-लिखा हर आदमी बिना जाने-बरते, देखे-परखे, निर्विवाद रुप से महान होता है।

7. हमारे यहां बेईमानी बहुत है, हमें आशा ही नहीं होती कि कोई किसीका काम बिना जान-पहचान-जुगाड़ के एक जैसी ज़िम्मेदारी से कर सकता है। इसलिए नमस्ते कर-करके हम एक संबंध विकसित कर लेना चाहते हैं जो कि भविष्य में भी हमारे काम आएगा।

8. इनके अलावा कुछ और ?

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-संजय ग्रोवर
19-06-2014

1 comment:

  1. नमस्कार पर बहुत बढ़िया उधेड़बुन..

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