आप बचपन में स्कूल से भाग जाते थे!
यह अच्छी बात है या बुरी ?
यह कैसे तय होगा ?
लोग इसे कैसे तय करते हैं ?
एक आदमी भागता है और भागकर फ़िल्मनगरी पहुंच जाता है। न सिर्फ़ पहुंच जाता है बल्कि कामयाब हो जाता है, क़ामयाब नायक, नायिका, शायर, निर्देशक.......बन जाता है। अब देखिए ज़रा, उसके भागने को पत्र-पत्रिकाएं, टीवी चैनल किस तरह लगभग एक शौर्यगाथा या एक अनुकरणीय, उदाहरणीय घटना की तरह पेश करते हैं, वे कह सकते हैं कि इनमें बचपन से ख़तरे उठाने की, निर्णय लेने की, भीड़ के, मान्यताओं के खि़लाफ़ जाने की हिम्मत थी........
ज़रा सोचिए, यही आदमी या ऐसा ही कोई दूसरा आदमी भागता है और जाकर कहीं खो जाता है, नाकाम हो जाता है, स्मगलर बन जाता है, नाकाम होकर वापस लौट आता है। अब वही लोग इसके भागने को क्या कहेंगे !? साला बचपन से ही निकम्मा है, स्कूल से भी भागता था, यहां से भी भाग आया, हर जगह से भागेगा, बचपन से ही कमीना था, स्कूल से भागता था तो स्मगलर न बनता तो क्या बनता......
लोग परिणाम से साधनों या रास्तों का सही या ग़लत होना तय करते हैं......
क्योंकि मान्यताएं ऐसी ही हैं।
वरना इसके कुछ दूसरे मतलब भी हो सकते थे। सौ प्रतिशत तो नहीं मगर संभावना पूरी है कि जो आदमी स्कूल से भाग सकता है वह सफ़लता के दूसरे उल्टे-सीधे रास्ते क्यों नहीं अपना सकता ? एक मतलब यह भी होता है कि कथित सफ़लता ऐसे ही लोगों को मिलती है, ऐसे ही रास्तों से मिलती है....
मान्यताएं पुरानी हैं मगर मस्तिष्क हमारे पास है तो हमारी क्या मजबूरी है कि ख़ामख़्वाह उन्हें मानें !?
-संजय ग्रोवर
03-06-2014
On FaceBook
यह अच्छी बात है या बुरी ?
यह कैसे तय होगा ?
लोग इसे कैसे तय करते हैं ?
एक आदमी भागता है और भागकर फ़िल्मनगरी पहुंच जाता है। न सिर्फ़ पहुंच जाता है बल्कि कामयाब हो जाता है, क़ामयाब नायक, नायिका, शायर, निर्देशक.......बन जाता है। अब देखिए ज़रा, उसके भागने को पत्र-पत्रिकाएं, टीवी चैनल किस तरह लगभग एक शौर्यगाथा या एक अनुकरणीय, उदाहरणीय घटना की तरह पेश करते हैं, वे कह सकते हैं कि इनमें बचपन से ख़तरे उठाने की, निर्णय लेने की, भीड़ के, मान्यताओं के खि़लाफ़ जाने की हिम्मत थी........
ज़रा सोचिए, यही आदमी या ऐसा ही कोई दूसरा आदमी भागता है और जाकर कहीं खो जाता है, नाकाम हो जाता है, स्मगलर बन जाता है, नाकाम होकर वापस लौट आता है। अब वही लोग इसके भागने को क्या कहेंगे !? साला बचपन से ही निकम्मा है, स्कूल से भी भागता था, यहां से भी भाग आया, हर जगह से भागेगा, बचपन से ही कमीना था, स्कूल से भागता था तो स्मगलर न बनता तो क्या बनता......
लोग परिणाम से साधनों या रास्तों का सही या ग़लत होना तय करते हैं......
क्योंकि मान्यताएं ऐसी ही हैं।
वरना इसके कुछ दूसरे मतलब भी हो सकते थे। सौ प्रतिशत तो नहीं मगर संभावना पूरी है कि जो आदमी स्कूल से भाग सकता है वह सफ़लता के दूसरे उल्टे-सीधे रास्ते क्यों नहीं अपना सकता ? एक मतलब यह भी होता है कि कथित सफ़लता ऐसे ही लोगों को मिलती है, ऐसे ही रास्तों से मिलती है....
मान्यताएं पुरानी हैं मगर मस्तिष्क हमारे पास है तो हमारी क्या मजबूरी है कि ख़ामख़्वाह उन्हें मानें !?
-संजय ग्रोवर
03-06-2014
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जीवन अनुभव ही सही राह दिखलाता है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
अतिसुन्दर सच है अपने लिए क्या सही ओर क्या गलत है इसके निर्णय खुद को ही करना चाहिए अपनी चाबी अपने पास रखना ही समझदारी है दुनिया तो मुंह देखी बात करती है
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