यह अद्भुत है।
कबीरदास जो जिंदग़ी-भर अंधविश्वासों का विरोध करते रहे उनकी जब मृत्यु हुई तो उनके हिंदू और मुस्लिम शिष्य उनका अंतिम संस्कार अपने-अपने तरीक़े से करने के लिए लड़ने लगे। जब उन्होंने लाश पर से चादर हटाई तो नीचे से फूल निकल आए जिन्हें शिष्यों ने आधा-आधा बांट लिया।
अंधविश्वास का प्रकट विरोध करनेवाले व्यक्ति के अंत की कहानी को भी एक अंधविश्वास में बदल दिया गया है।
अद्भुत् हैं हमारी क्षमताएं और नीयतें!
July 16, 2014
कबीरदास के बारे में हर कहीं लिखा है कि वे अंधविश्वासों का प्रकट विरोध करते थे।
मगर उन्हीं क़िताबों में लिखा है कि जब वे मरे तो उनकी लाश की जगह फूल निकले।
गांधीजी के बारे में हर जगह बताया गया है कि वे अहिंसा में विश्वास करते थे मगर वही स्रोत यह भी कहते हैं कि गीता उनकी प्रिय पुस्तक थी।
बुद्ध के बारे में कहा गया कि वे मूर्त्तिपूजा और भगवानियत के विरोधी थे मगर आज जगह-जगह उनकी मूर्त्तियां हैं और कई लोग उन्हें भगवान बुद्ध कहते हैं।
क्या यह महज़ संयोग है ?
या फ़िर प्रगतिशीलता की आड़ में वैसा ही घालमेल है जैसा आजकल कई जगह देखने को मिल रहा है ?
December 26, 2014
-संजय ग्रोवर
कबीरदास जो जिंदग़ी-भर अंधविश्वासों का विरोध करते रहे उनकी जब मृत्यु हुई तो उनके हिंदू और मुस्लिम शिष्य उनका अंतिम संस्कार अपने-अपने तरीक़े से करने के लिए लड़ने लगे। जब उन्होंने लाश पर से चादर हटाई तो नीचे से फूल निकल आए जिन्हें शिष्यों ने आधा-आधा बांट लिया।
अंधविश्वास का प्रकट विरोध करनेवाले व्यक्ति के अंत की कहानी को भी एक अंधविश्वास में बदल दिया गया है।
अद्भुत् हैं हमारी क्षमताएं और नीयतें!
July 16, 2014
कबीरदास के बारे में हर कहीं लिखा है कि वे अंधविश्वासों का प्रकट विरोध करते थे।
मगर उन्हीं क़िताबों में लिखा है कि जब वे मरे तो उनकी लाश की जगह फूल निकले।
गांधीजी के बारे में हर जगह बताया गया है कि वे अहिंसा में विश्वास करते थे मगर वही स्रोत यह भी कहते हैं कि गीता उनकी प्रिय पुस्तक थी।
बुद्ध के बारे में कहा गया कि वे मूर्त्तिपूजा और भगवानियत के विरोधी थे मगर आज जगह-जगह उनकी मूर्त्तियां हैं और कई लोग उन्हें भगवान बुद्ध कहते हैं।
क्या यह महज़ संयोग है ?
या फ़िर प्रगतिशीलता की आड़ में वैसा ही घालमेल है जैसा आजकल कई जगह देखने को मिल रहा है ?
December 26, 2014
-संजय ग्रोवर
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