Shailesh Verma
काल्पनिक भगवान से हट कर जीवन के दूसरी इम्पोर्टेन्ट विषयो पर कभी पोस्ट कीजिये , ऐसा लगता है कि आपकी सुई वही अटक गयी है ..भगवन फगवान नही है ये जान के ऐसा कोई तीर नही मार लिया है सब जानते है पंडो की हक़ीक़त,.आत्म मुग्ध प्राणी लगे रहते है यूरेका यूरेका चिल्लाने , अभी भी वक़्त है सुधर जाओ वरना यूरेका यूरेका ही ले डूबेगा
Sanjay Grover
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वैसे तो फ़ेक आयडियां इस लायक नहीं होतीं कि उन्हें जवाब भी दिया जाए मगर ‘मैं’ देता हूं, आप चाहें तो इसे आत्ममुग्धता कहें। सारे भारत में एक आदमी नहीं मिलेगा जो ख़ुदको आत्ममुग्ध कहे, सभी सामाजिक बने बैठे हैं, लेकिन समाज की दशा ख़ुद ही बता देती है कि समाज के लोग कैसे हैं।
जीवन के दूसरे विषयों पर मैंने लगातार मौलिक लेखन किया है बल्कि नास्तिकता के अंतर्गत भी मैंने वे मुद्दे उठाएं जिन्हें किसीने छुआ भी नहीं था। और इसीसे चमचों, तोतों और मोहरों को भारी तक़लीफ़ हो रही है।
आप क्या मेरे बताए विषयों पर लिखते हैं ? आपकी आईडी का अता-पता नहीं और आप दूसरों को विषय सुझाएंगे !? दूसरों के बताए विषयों पर लिखने का यह महान आयडिया आपका है, कृपया शुरुआत भी आप करके दिखाएं। अपनी आईडी स्पष्ट करें और कम से कम पांच साल मेरे बताए विषयों पर लिखकर बताएं, फिर मैं भी सोचूंगा। समझे अफ़वाहबाज़ मौक़ापरस्त।
आप क्या सोचते हैं कि मैं आपके जाल में फंस जाऊंगा !? आपकी तरह सत्ताओं की गोद में बैठकर लोगों को बहकाना शुरु कर दूंगा ? आपकी औक़ात तो इसीसे पता चलती है कि नास्तिकता पर जो दिखावटी ग्रुप मेरी नक़ल पर बने हैं उनकी ‘क्लोज़्ड सैटिंग्स्’ पर आप कुछ नहीं बोल सकते। आपको क्लोज़्ड् सैटिंग्स् वाली नास्तिकता और प्रगतिशीलता चाहिए और वो यहां कभी होने नहीं वाला।
मैंने अख़बारों में आने की चिंता छोड़ी, टीवी की चिंता छोड़ी, लोकप्रियता की चिंता छोड़ी, पैसे की चिंता छोड़ी तो क्या इसलिए छोड़ी कि आपकी तरह मालिक़ों की गोद में बैठकर उन्हें ख़ुश करने के लिए किसी ऐसे आदमी पर गोबर उछालूं जिसने बिना किसीसे कुछ लिए सबसे ज़्यादा जागरुक करने का काम किया हो !? आप जैसे लोगों से मैं यह उम्मीद भी नहीं करता कि आपको कभी शर्म भी आएगी। लेकिन इस बात को दिमाग़(जैसा भी है) से निकाल दें कि मैं आपके जैसा हो जाऊंगा।
मैं जानता हूं कि मेरे ग्रुप सबसे ज़्यादा जागरुक, स्वतंत्र, मौलिक, सक्रिय, जीवंत और अहिंसक ग्रुप हैं और इसीलिए किराए के टट्टुओं को भारी परेशानी हो रही है। यह परेशानी दूर करनी है तो सच बोलके दिखाओ वरना आपकी दो कौड़ी की अफ़वाहों, बदनामियों, चालाकिओं और क़िस्से-कहानियों से मैं क़तई प्रभावित नहीं होनेवाला। मैं यहां सच्चा और मौलिक जीवन जीने के लिए ज़िंदा हूं आपकी तरह कायरलीला करने के लिए नहीं बैठा। समझे!
मेरी सुई सही निशाने पर जाकर लगी है। मेरे पास बहुत सारी सुईयां हैं। मैं आपकी तरह उधारची नहीं हूं कि मालिक़ों की रटाई एक सुई पर लटककर मुर्दों की तरह सारा जीवन गुज़ार दूंगा।
Dhawan Nishad
इस ग्रुप मे आप जैसे दो चार ही लोग हैं ,जो नास्तिक हैं बाकी सब तो ऐसे हैं जैसे शेर की खाल मे लोमड़ी ,जो दोगलेपन की पहचान बताते हैं ,इस ग्रुप मे मै मेरा शामिल होने का मतलब था नास्तिकता को जानना /पर यहा जितने पोस्ट देखता हूँ सबके सब अम्बेडकर वादी ही पोस्ट होते हैं ,जो की मुझे कट्टरपंथी ही लगता हैं
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Sanjay Grover
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अंबेडकरवाद से जुड़े लोगों की सामाजिक स्थिति दूसरों की तुलना में बहुत ज़्यादा ख़राब रही है। वे शुरु से इस ग्रुप में साथ रहे हैं और अंधविश्वास पर तार्किक लेखन करते रहे हैं। जब ग्रुप शुरु हुआ तब तक भी उनके लिए मंच ज़्यादा नहीं थे, कम्युनिस्ट तक उनके साथ ख़ुलेआम खड़े होने में शर्माते थे। लेकिन चूंकि मैं किसी विचारधारा, धर्म, मंच, गुट का ग़ुलाम नहीं हूं इसलिए मुझे नया से नया, अलग से अलग, जो भी मानवीय लगे, करने में कोई दिक़्क़त नहीं थी। बाद में, जिसका कि मुझे भी अंदाज़ा था, भड़कानेवाले लोगों ने अपना काम शुरु कर दिया और जिन्हें भड़कना था वे भड़कने लगे। लेकिन मेरी तरफ़ से स्पष्ट था कि जब मुझे ब्राहमणवादी अहंकारियों की चिंता नहीं है तो दूसरे किन्हीं अहंकारियों की चिंता क्यों करुंगा ? सामाजिकता की आड़ में ग़ुलामी ही करनी हो तो सबसे ज़्यादा फ़ायदा तो ब्राहमणवाद की ग़ुलामी में ही था जो कि बहुत सारे ‘महान’ लोग उठा भी रहे हैं। पर मेरा वो रास्ता न तो कभी था न होनेवाला है।
मैं आज भी अंबेडकरवाद से जुड़ी कुछ पोस्टों को जाने देता हूं, मगर कईयों को रोक भी लेता हूं। इसी तरह कई बार दूसरी पोस्टों के साथ भी करता हूं।
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