कुछेक बार यह बात उठाई गई कि इस ग्रुप में स्त्रियां नहीं हैं, या कम हैं। अगर ऐसा है तो क्यों है?
इस संदर्भ में कुछ बातें तो पहले से ही साफ़ हैं, कुछ मैं अब साफ़ किए देता हूं।
पुराने तो लगभग सभी सदस्य जानते हैं, नये भी जानते ही होंगे कि हम अपनी तरफ़ से किसीको भी ग्रुप में ऐड नहीं करते, जो रिक्वेस्ट आतीं हैं उनमें से ही सदस्य चुनते हैं ; उनमें अगर स्त्रियों की रिक्वेस्ट होतीं हैं तो उन्हें चुनने की हमारी कोई अलग प्रक्रिया नहीं है। हमारे मित्र सुधीर कु. जाटव लगभग शुरु से ही मेरे साथ एडमिन रहे हैं, वे भी इस स्थिति को स्पष्ट कर सकते हैं।
दूसरे, यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि इस देश में नास्तिकता को लेकर स्त्रियों की दिशा और (मनो)दशा स्पष्ट, संतोषजनक और उल्लेखनीय कभी भी नहीं रही। इस ग्रुप से बाहर भी स्त्रियों के नास्तिकता पर कितने स्टेटस देखने में आते हैं ? कई महीने पहले मैंने यूट्यूब पर जाकर नास्तिकता को खोजा तो पाया कि वहां 16-18 साल की विदेशी लड़कियां पूरे आत्मविश्वास के साथ नास्तिकता पर अपने विचार रख रहीं हैं और उनके वीडियो लगा रहीं हैं। और भारत के तो पुरुषों की स्थिति भी वहां नगण्य है। किसी पार्टी-विशेष, संस्था-विशेष या नेता-विशेष को ग़ालियां देने को ही अगर कोई नास्तिकता और प्रगतिशीलता मानता हो तो उसको उसके हाल पर छोड़ देने के अलावा चारा भी क्या है!?
ये दो कारण तो पहले से ही बहुत-से मित्र समझते हैं। अपने बारे में स्पष्ट कर दूं कि चूंकि मेरे लिए नास्तिकता का मतलब ही सभी धारणाओं, मान्यताओं, परिभाषाओं, मुहावरों, संस्कारों और संस्कृतियों आदि से ऊपर उठकर सोचना है; उनपर पुनर्विचार करना है इसलिए मेरी इस गणितबाज़ी में कोई दिलचस्पी नहीं है कि किस ग्रुप में कितनी स्त्रियां हैं, कितने पुरुष हैं, ग्रुप के सदस्यों की संख्या कितनी है, बच्चे कितने हैं, सेलेब्रिटीज़ कितनी हैं, मशहूर लोग कितने हैं आदि-आदि। मैंने कई बार कहा है कि अगर आपके पास कहने के लिए कुछ है तो इस बात की चिंता कतई न करें कि आप स्त्री हैं, कि पुरुष हैं, कि ग़रीब हैं, कि अमीर हैं,लेखक हैं, अलेखक हैं, छोटे हैं, बड़े हैं, ऊंच हैं, नीच हैं (कृपया सबमें ‘कथित’ जोड़कर पढ़ें), लैंगिक विकलांग हैं, कि समलैंगिक हैं, कि ......जो कुछ भी हैं। हमारे लिए स्त्रियां कोई स्टेटस-सिंबल नहीं हैं, हमारे ग्रुप में ऐसी कोई परंपरा नहीं है कि कोई विशेष अतिथि आएगा तो स्त्रियां फूलमाला-वाला डालकर उसका स्वागत करेंगीं। एक तो ये वैसे भी घटिया, अहंकारों को पालने-पोसने वाले, स्त्रियों को सामान की तरह इस्तेमाल करनेवाले कर्मकांड हैं, दूसरे, हमारे यहां विशेष अतिथि नाम की चिड़िया पर भी नहीं मार सकती। दोस्त की तरह, इंसान की तरह जो भी आए, सबका स्वागत है। ‘विशेष अतिथि’ का ज़माना गया।
मुझे कहने में कतई संकोच नहीं कि सिर्फ़ स्त्री होने की वजह से किसीको सर पर नहीं बिठाया जा सकता। घुमा-फिराकर बार-बार पुरानी बीमारियों को जारी रखने की मूर्खता में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है। पुरुष को सर से उठाकर फेंक देने का मतलब यह नहीं है कि अब हम उसकी जगह स्त्रियों को बिठा देंगे कि पहले ये गुंडाग़र्दी कर रहा था, अब तुम्हारी बारी है, करो ख़ुलके, यही हमारा समस्या हल करने का तरीक़ा है। मैंने जब स्त्री-मुक्ति पर लिखना शुरु किया तो मैं छोटे क़स्बे मैं रहता था। मेरे दो-चार ही लेख छपे होंगे कि हमारे घर पर टट्टी फेंकी जाने लगी। यह टट्टी एक पढ़ी-लिखी ब्राहमण स्त्री के घर से फ़ेकी जाती थी। उस स्त्री की वजह से मैंने नारी-मुक्ति पर लिखना बंद नहीं कर दिया। जहां तक मुक्ति की बात है, मैं हर तरह की मुक्ति का समर्थक हूं, मैं कहता रहा हूं कि अगर एक आदमी भी अपनी बिलकुल अलग जीवन-शैली में जीना चाहता है तो उसे भी अपनी तरह से जीने की पूरी आज़ादी होनी चाहिए बशर्ते कि वह किसीको सता न रहा हो। लेकिन स्त्री-मुक्ति के नाम पर कोई जातिवादी खेल खेले, यह बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह मैं बहुत देख चुका हूं कि समानता, प्रगतिशीलता, अनेकता में एकता, वामपंथ आदि के नाम पर अपनी जाति और वर्ण को फ़ायदा पहुंचाने, दूसरों की मेहनत और दूसरों के विचारों को हड़पकर अपनी इमेज बनाने के शर्मनाक़ खेल रचे जाते हैं और कोई इसपर आपत्ति करे, इसे बताए तो उसे स्त्री-विरोधी की तरह पेश करने की कोशिश की जाती है। ‘चोरी और सीनाज़ोरी’ का अमानवीय, बेशर्म, ढीठ और घिनौना कृत्य हमारे ग्रुपों में किसी क़ीमत पर नहीं चलेगा। ब्राहमणवाद चाहे किसी संघ की चुनरिया ओढ़ के आए या किसी पंथ का टॉप चढ़ाके, हम उसे बिना किसी चश्में के देखते हैं और समझते हैं। जिसको धोखा खाने और पुंछल्ला बनने का शौक़ हो, उसे इसकी पूरी स्वतंत्रता है, मगर हम पक्ष और विपक्ष के बंटवारे की मूर्खता में बहकर किसी भी गंदी नीयत और चालबाज़ी की पीठ नहीं थपथपाने वाले।
ज़रुरत हुई तो इससे आगे भी लिखूंगा।
-संजयग्रोवर
24-05-2015
नास्तिकTheAtheist Group
इस संदर्भ में कुछ बातें तो पहले से ही साफ़ हैं, कुछ मैं अब साफ़ किए देता हूं।
पुराने तो लगभग सभी सदस्य जानते हैं, नये भी जानते ही होंगे कि हम अपनी तरफ़ से किसीको भी ग्रुप में ऐड नहीं करते, जो रिक्वेस्ट आतीं हैं उनमें से ही सदस्य चुनते हैं ; उनमें अगर स्त्रियों की रिक्वेस्ट होतीं हैं तो उन्हें चुनने की हमारी कोई अलग प्रक्रिया नहीं है। हमारे मित्र सुधीर कु. जाटव लगभग शुरु से ही मेरे साथ एडमिन रहे हैं, वे भी इस स्थिति को स्पष्ट कर सकते हैं।
दूसरे, यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि इस देश में नास्तिकता को लेकर स्त्रियों की दिशा और (मनो)दशा स्पष्ट, संतोषजनक और उल्लेखनीय कभी भी नहीं रही। इस ग्रुप से बाहर भी स्त्रियों के नास्तिकता पर कितने स्टेटस देखने में आते हैं ? कई महीने पहले मैंने यूट्यूब पर जाकर नास्तिकता को खोजा तो पाया कि वहां 16-18 साल की विदेशी लड़कियां पूरे आत्मविश्वास के साथ नास्तिकता पर अपने विचार रख रहीं हैं और उनके वीडियो लगा रहीं हैं। और भारत के तो पुरुषों की स्थिति भी वहां नगण्य है। किसी पार्टी-विशेष, संस्था-विशेष या नेता-विशेष को ग़ालियां देने को ही अगर कोई नास्तिकता और प्रगतिशीलता मानता हो तो उसको उसके हाल पर छोड़ देने के अलावा चारा भी क्या है!?
ये दो कारण तो पहले से ही बहुत-से मित्र समझते हैं। अपने बारे में स्पष्ट कर दूं कि चूंकि मेरे लिए नास्तिकता का मतलब ही सभी धारणाओं, मान्यताओं, परिभाषाओं, मुहावरों, संस्कारों और संस्कृतियों आदि से ऊपर उठकर सोचना है; उनपर पुनर्विचार करना है इसलिए मेरी इस गणितबाज़ी में कोई दिलचस्पी नहीं है कि किस ग्रुप में कितनी स्त्रियां हैं, कितने पुरुष हैं, ग्रुप के सदस्यों की संख्या कितनी है, बच्चे कितने हैं, सेलेब्रिटीज़ कितनी हैं, मशहूर लोग कितने हैं आदि-आदि। मैंने कई बार कहा है कि अगर आपके पास कहने के लिए कुछ है तो इस बात की चिंता कतई न करें कि आप स्त्री हैं, कि पुरुष हैं, कि ग़रीब हैं, कि अमीर हैं,लेखक हैं, अलेखक हैं, छोटे हैं, बड़े हैं, ऊंच हैं, नीच हैं (कृपया सबमें ‘कथित’ जोड़कर पढ़ें), लैंगिक विकलांग हैं, कि समलैंगिक हैं, कि ......जो कुछ भी हैं। हमारे लिए स्त्रियां कोई स्टेटस-सिंबल नहीं हैं, हमारे ग्रुप में ऐसी कोई परंपरा नहीं है कि कोई विशेष अतिथि आएगा तो स्त्रियां फूलमाला-वाला डालकर उसका स्वागत करेंगीं। एक तो ये वैसे भी घटिया, अहंकारों को पालने-पोसने वाले, स्त्रियों को सामान की तरह इस्तेमाल करनेवाले कर्मकांड हैं, दूसरे, हमारे यहां विशेष अतिथि नाम की चिड़िया पर भी नहीं मार सकती। दोस्त की तरह, इंसान की तरह जो भी आए, सबका स्वागत है। ‘विशेष अतिथि’ का ज़माना गया।
मुझे कहने में कतई संकोच नहीं कि सिर्फ़ स्त्री होने की वजह से किसीको सर पर नहीं बिठाया जा सकता। घुमा-फिराकर बार-बार पुरानी बीमारियों को जारी रखने की मूर्खता में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है। पुरुष को सर से उठाकर फेंक देने का मतलब यह नहीं है कि अब हम उसकी जगह स्त्रियों को बिठा देंगे कि पहले ये गुंडाग़र्दी कर रहा था, अब तुम्हारी बारी है, करो ख़ुलके, यही हमारा समस्या हल करने का तरीक़ा है। मैंने जब स्त्री-मुक्ति पर लिखना शुरु किया तो मैं छोटे क़स्बे मैं रहता था। मेरे दो-चार ही लेख छपे होंगे कि हमारे घर पर टट्टी फेंकी जाने लगी। यह टट्टी एक पढ़ी-लिखी ब्राहमण स्त्री के घर से फ़ेकी जाती थी। उस स्त्री की वजह से मैंने नारी-मुक्ति पर लिखना बंद नहीं कर दिया। जहां तक मुक्ति की बात है, मैं हर तरह की मुक्ति का समर्थक हूं, मैं कहता रहा हूं कि अगर एक आदमी भी अपनी बिलकुल अलग जीवन-शैली में जीना चाहता है तो उसे भी अपनी तरह से जीने की पूरी आज़ादी होनी चाहिए बशर्ते कि वह किसीको सता न रहा हो। लेकिन स्त्री-मुक्ति के नाम पर कोई जातिवादी खेल खेले, यह बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह मैं बहुत देख चुका हूं कि समानता, प्रगतिशीलता, अनेकता में एकता, वामपंथ आदि के नाम पर अपनी जाति और वर्ण को फ़ायदा पहुंचाने, दूसरों की मेहनत और दूसरों के विचारों को हड़पकर अपनी इमेज बनाने के शर्मनाक़ खेल रचे जाते हैं और कोई इसपर आपत्ति करे, इसे बताए तो उसे स्त्री-विरोधी की तरह पेश करने की कोशिश की जाती है। ‘चोरी और सीनाज़ोरी’ का अमानवीय, बेशर्म, ढीठ और घिनौना कृत्य हमारे ग्रुपों में किसी क़ीमत पर नहीं चलेगा। ब्राहमणवाद चाहे किसी संघ की चुनरिया ओढ़ के आए या किसी पंथ का टॉप चढ़ाके, हम उसे बिना किसी चश्में के देखते हैं और समझते हैं। जिसको धोखा खाने और पुंछल्ला बनने का शौक़ हो, उसे इसकी पूरी स्वतंत्रता है, मगर हम पक्ष और विपक्ष के बंटवारे की मूर्खता में बहकर किसी भी गंदी नीयत और चालबाज़ी की पीठ नहीं थपथपाने वाले।
ज़रुरत हुई तो इससे आगे भी लिखूंगा।
-संजयग्रोवर
24-05-2015
नास्तिकTheAtheist Group
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