एक पूर्वाग्रहों और धारणाओं से मुक्त समाज वह होगा जो किसी भी व्यक्ति बल्कि विचार को ख़ुले दिल से सुनने को तैयार होगा। वहां किसीके लिए भूमिका नहीं बांधनी पड़ेगी कि इस व्यक्ति को इसलिए सुनिए कि इनके चाचा बड़े अच्छे विचारक थे, कि इन्होंने दस विषयों में डिग्री ले रखी है, कि इनकी वर्ण-परंपरा विद्वानों की परंपरा है, ये फ़लां ख़ानदान से ताल्लुक रखते हैं, फ़लां संपादक के नीचे इनकी चिंतन-भूमि विकसित हुई है, कि साहित्य की दुनिया में इनकी ज़बरदस्त ख़्याति है.......
विचार का इस सारी बक़वास से कोई मतलब नहीं होता। करनेवाला जानता हो कि न जानता हो मगर अंततः ये सारा खेल धंधेबाज़ी और अहंकार से जुड़ा है।
अगर आपके पास कहने को कुछ है, कुछ है जो परेशान करता है, सोने नहीं देता, जीने नहीं देता, कहे बिना नहीं बनता तो बिना इस बात की परवाह किए कहें कि आपसे पहले ऐसा किसीने कहा या नहीं, कोई क्या सोचेगा, क्या मेरी हैसियत है कि मैं कुछ बोलूं.....
एक बेहतर समाज, किसी व्यक्ति(विशेष) का नहीं, विचार का स्वागत करेगा। अगर एक छोटा वच्चा भी कोई महत्वपूर्ण बात कह रहा है तो एक जागरुक समाज पूरी गंभीरता से उसकी बात सुनेगा। बात समाज के काम की है तो काम की है, इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि किसने कही, कहां खड़े होकर कही, किसके रिश्तेदार किसके दोस्त ने कही, पढ़कर कही कि बिना पढ़े कही, चार लोगों में कही कि चार सौ में कही, गुरुघंटाल टाइम्स में कही कि फ़ेसबुक पर कही, चार बड़ों(?) द्वारा परिचय कराने के बाद कही कि ख़ुद ही आकर कह दी !?
बात ही समाज के काम की होती है, झालरें और झाड़फ़ानूस नहीं।
अगर आपके पास कहने को कुछ है, कुछ है जो परेशान करता है, सोने नहीं देता, जीने नहीं देता, कहे बिना नहीं बनता तो बिना इस बात की परवाह किए कहें कि आपसे पहले ऐसा किसीने कहा या नहीं, कोई क्या सोचेगा, क्या मेरी हैसियत है कि मैं कुछ बोलूं.....
अपनी बात कहिए, यह आपके लिए भी ज़रुरी है और दूसरों के लिए भी।
-संजय ग्रोवर
(फ़ेसबुक, नास्तिक द अथीस्ट ग्रुप)
19 July 2014
विचार का इस सारी बक़वास से कोई मतलब नहीं होता। करनेवाला जानता हो कि न जानता हो मगर अंततः ये सारा खेल धंधेबाज़ी और अहंकार से जुड़ा है।
अगर आपके पास कहने को कुछ है, कुछ है जो परेशान करता है, सोने नहीं देता, जीने नहीं देता, कहे बिना नहीं बनता तो बिना इस बात की परवाह किए कहें कि आपसे पहले ऐसा किसीने कहा या नहीं, कोई क्या सोचेगा, क्या मेरी हैसियत है कि मैं कुछ बोलूं.....
एक बेहतर समाज, किसी व्यक्ति(विशेष) का नहीं, विचार का स्वागत करेगा। अगर एक छोटा वच्चा भी कोई महत्वपूर्ण बात कह रहा है तो एक जागरुक समाज पूरी गंभीरता से उसकी बात सुनेगा। बात समाज के काम की है तो काम की है, इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि किसने कही, कहां खड़े होकर कही, किसके रिश्तेदार किसके दोस्त ने कही, पढ़कर कही कि बिना पढ़े कही, चार लोगों में कही कि चार सौ में कही, गुरुघंटाल टाइम्स में कही कि फ़ेसबुक पर कही, चार बड़ों(?) द्वारा परिचय कराने के बाद कही कि ख़ुद ही आकर कह दी !?
बात ही समाज के काम की होती है, झालरें और झाड़फ़ानूस नहीं।
अगर आपके पास कहने को कुछ है, कुछ है जो परेशान करता है, सोने नहीं देता, जीने नहीं देता, कहे बिना नहीं बनता तो बिना इस बात की परवाह किए कहें कि आपसे पहले ऐसा किसीने कहा या नहीं, कोई क्या सोचेगा, क्या मेरी हैसियत है कि मैं कुछ बोलूं.....
अपनी बात कहिए, यह आपके लिए भी ज़रुरी है और दूसरों के लिए भी।
-संजय ग्रोवर
(फ़ेसबुक, नास्तिक द अथीस्ट ग्रुप)
19 July 2014
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