खेलों के लिए किसीको पुरस्कार दिए जाएं या साहित्य के लिए, उसके लिए नियम तोड़े जाएं या नए जोड़े जाएं, व्यक्तिगत रुप से मुझे पुरस्कार कभी भी महत्वपूर्ण नहीं लगे। विवाह और राजनीति की तरह यह भी आदमी के दिमाग़ की उपज हैं। और ऐसी सब व्यवस्थाओं पर आज सवाल उठ रहे हैं, बहुत-से लोग इन्हें नकार भी रहे हैं। फ़िलहाल, अंधविश्वासों से उबरने के प्रयासों के तहत खेलों पर बात की जाए कि इससे ‘राष्ट्र’ और ‘समाज’ को क्या फ़ायदे होते हैं:-
1. खेल देखने/खेलनेवाले व्यक्ति अपने जीवन में ईमानदार होते हैं या दूसरों से ज़्यादा ईमानदार होते हैं ?
2. खेलों में रुचि रखनेवाले व्यक्ति दहेज नहीं लेते ?
3. खेलों में रुचि रखनेवाले व्यक्ति लड़के-लड़की में भेद नहीं करते ?
4. खेलों में रुचि रखनेवाले बलात्कार नहीं करते ?
5. खेलों में रुचि रखनेवाले लाइन में लगकर काम कराते हैं (जो कि स्वानुशासन की तरफ़ एक क़दम है) ? वे मैच की टिकट कभी ब्लैक में नहीं ख़रीदते ?
6. खेल को पसंद करनेवाले लोग पर्यावरण का ख़्याल रखते हैं ? वे पेड़ नहीं काटते, पेड़ पर चढ़कर मैच नहीं देखते ?
7. खेलप्रेमी लोग अपने दफ़तर हमेशा वक्त पर पहुंचते हैं ?
8. खेलप्रेमी नियमित व्यायाम करते हैं ? व्यायाम करनेवाले सभी लोग खेलप्रेमी होते हैं ?
9. खेलप्रेमी मैच देखते समय रस्सी कूद रहे होते हैं ?
10. खेलप्रेमी अपने सभी टैक्स और बिल ईमानदारी से, सही वक्त पर चुकाते हैं ?
11. खेलप्रेमी होने के लिए भारी ख़तरे उठाने पड़ते हैं ? इसलिए ज़्यादा खेल देखनेवाले लोग ख़तरों से जूझने के अभ्यस्त हो जाते हैं ?
12. खेलप्रेमी कभी सट्टा नहीं खेलते, पैसे के लेन-देनवाली शर्त्तें नहीं लगाते, फ़िक्सिंग का तो उन्होंने नाम तक नहीं सुना होता।
13. मैच देखने से आदमी में न्याय, ईमानदारी और समानता का भाव पैदा होता है, ऊंच-नीच ख़त्म होती है ?
यह चीज़ों की वास्तविकता को समझने का एक छोटा-सा प्रयास है। हो सकता है यह बिलकुल ग़लत हो, हो सकता है काफ़ी हद तक सही हो। आप अपनी तरह से इसे आगे बढ़ा सकते हैं। खेलों से संस्थाओं इत्यादि को आमदनी होती है, इतना ज़रुर समझ में आता है। मगर क्या यह इतनी बड़ी बात है कि खिलाड़ियों को सबके सिर पर बिठा दिया जाए ? पैसा तो कोई भी तमाशा खड़ा करके कमाया जा सकता है।
आपकी तार्किक प्रतिक्रियाओं का स्वागत है। आप इसमें नए सवाल जोड़ सकते हैं। इसी क्रम में किसी दिन पुरस्कारों की ‘उपयोगिता’ पर भी बात करेंगे।
-संजय ग्रोवर
17-11-2013 ( on facebook )
1. खेल देखने/खेलनेवाले व्यक्ति अपने जीवन में ईमानदार होते हैं या दूसरों से ज़्यादा ईमानदार होते हैं ?
2. खेलों में रुचि रखनेवाले व्यक्ति दहेज नहीं लेते ?
3. खेलों में रुचि रखनेवाले व्यक्ति लड़के-लड़की में भेद नहीं करते ?
4. खेलों में रुचि रखनेवाले बलात्कार नहीं करते ?
5. खेलों में रुचि रखनेवाले लाइन में लगकर काम कराते हैं (जो कि स्वानुशासन की तरफ़ एक क़दम है) ? वे मैच की टिकट कभी ब्लैक में नहीं ख़रीदते ?
6. खेल को पसंद करनेवाले लोग पर्यावरण का ख़्याल रखते हैं ? वे पेड़ नहीं काटते, पेड़ पर चढ़कर मैच नहीं देखते ?
7. खेलप्रेमी लोग अपने दफ़तर हमेशा वक्त पर पहुंचते हैं ?
8. खेलप्रेमी नियमित व्यायाम करते हैं ? व्यायाम करनेवाले सभी लोग खेलप्रेमी होते हैं ?
9. खेलप्रेमी मैच देखते समय रस्सी कूद रहे होते हैं ?
10. खेलप्रेमी अपने सभी टैक्स और बिल ईमानदारी से, सही वक्त पर चुकाते हैं ?
11. खेलप्रेमी होने के लिए भारी ख़तरे उठाने पड़ते हैं ? इसलिए ज़्यादा खेल देखनेवाले लोग ख़तरों से जूझने के अभ्यस्त हो जाते हैं ?
12. खेलप्रेमी कभी सट्टा नहीं खेलते, पैसे के लेन-देनवाली शर्त्तें नहीं लगाते, फ़िक्सिंग का तो उन्होंने नाम तक नहीं सुना होता।
13. मैच देखने से आदमी में न्याय, ईमानदारी और समानता का भाव पैदा होता है, ऊंच-नीच ख़त्म होती है ?
यह चीज़ों की वास्तविकता को समझने का एक छोटा-सा प्रयास है। हो सकता है यह बिलकुल ग़लत हो, हो सकता है काफ़ी हद तक सही हो। आप अपनी तरह से इसे आगे बढ़ा सकते हैं। खेलों से संस्थाओं इत्यादि को आमदनी होती है, इतना ज़रुर समझ में आता है। मगर क्या यह इतनी बड़ी बात है कि खिलाड़ियों को सबके सिर पर बिठा दिया जाए ? पैसा तो कोई भी तमाशा खड़ा करके कमाया जा सकता है।
आपकी तार्किक प्रतिक्रियाओं का स्वागत है। आप इसमें नए सवाल जोड़ सकते हैं। इसी क्रम में किसी दिन पुरस्कारों की ‘उपयोगिता’ पर भी बात करेंगे।
-संजय ग्रोवर
17-11-2013 ( on facebook )
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