प्यारे बच्चो,
अंकल को फूल ज़रुर दो लेकिन याद रखो कि तुम्हारे पापा भी किसीके अंकल हैं। और अंकल भी किसीके पापा हैं। अपने पापा पर भी नज़र रखो, कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन कोई तुम्हारा दोस्त, कोई बच्चा तुम्हारे पापा को पूरा बग़ीचा दे जाए। ज़रा अपना घर देखो, क्या यह स्वीकृत नक़्शे के हिसाब से ही बना है ? इसकी बालकनी, इसके कमरे ज़रा ध्यान से देखो। अपने पानी-बिजली के मीटर देखो, क्या यह ठीक से चलते हैं ? उससे भी पहले यह देखो कि क्या यह चलते भी हैं ? उससे भी पहले ये देखो कि क्या ये लगे भी हैं ? अगर तुम्हारा ऐडमीशन किसी जुगाड़ या डोनेशन से हुआ है तो अपनेआप को भी सड़क पर फूल भेंट करो।
यह भी देखो कि तुम्हे फूल देना किसने सिखाया ? उसकी ख़ुदकी ज़िंदग़ी में कितनी ईमानदारी है ? कहीं कोई अपनी राजनीति के लिए तुम्हारा इस्तेमाल तो नहीं कर रहा ? अगर तुम्हे लगता है कि ऐसा हो रहा है तो सबसे पहले उन अंकल को फूल दो जो अपनी राजनीति चमकाने के लिए तुम्हे मिस्यूज़ कर रहे हैं। ध्यान रहे कि राजनीति यहां सिर्फ़ राजनीति में नहीं होती, घर-घर में होती है। अगर अंदर तुम अपने पापा की बेईमानियां छुपा लेते हो और बाहर अंकलों को फूल देते हो तो तुम भी राजनीति कर रहे हो। राजनीति इसीको कहते हैं मेरे प्यारे बच्चो।
सभी बच्चे अपने मां-बाप को महान समझते हैं। तुम जिन अंकल को फूल दे रहे हो उनके बच्चे भी अपने पापा को महान समझते आए हैं। तुम्हारे फूल से वो अंकल चोर से दिखने लगेंगे। तब उनके बच्चों को कैसा लगेगा ? महान लोग ऐसे होते हैं ? वैसे तुम्हे सोचना चाहिए कि सभी मां-बाप महान होते हैं तो फिर चोरी कौन करता है, भ्रष्टाचार कौन करता है, बलात्कार कौन करता है, टैक्स कौन चुराता है, लूटमार कौन करता है, मकान में से दुकान कौन निकालता है, मकान में नाजायज़ कमरे और बालकनी कौन बनाता है ? अगर मां-बाप यह नहीं करते तो क्या बच्चे करते हैं ? फिर तो बात तुम पर आ जाएगी, प्यारे बच्चो!
कहीं तुम किसीको फूल इसलिए तो नहीं दे रहे कि किसी टीवी वाले अंकल ने तुमसे कहा है कि अगर फूल दो तो तुम्हें टीवी पर दिखाया जाएगा ? इसका मतलब है कि तुम बस थोड़ी देर के लिए अच्छा और साहसी दिखने का अभिनय कर रहे हो। यह राजनीति भी है, पाखंड भी है, मौक़ापरस्ती भी है और बेईमानी भी है। इसके लिए ख़ुदको भी फूल दो और टीवी वाले अंकल-आंटियों को भी फूल दो। वैसे इतने फूल तुम लाओगे कहां से, प्यारे बच्चो !? इस तरह तो देश के सारे बाग़-बग़ीचे उजड़ जाएंगे।
मैं तो कहता हूं कि फूलों का मिस्यूज़ किसी भी हालत में नहीं होना चाहिए। और तुम तो ख़ुद ही फूल जैसे हो।
ज़रुरी हुआ तो फिर मिलेंगे-
तुम्हारा दोस्त,
-संजय ग्रोवर
20-02-2017
अंकल को फूल ज़रुर दो लेकिन याद रखो कि तुम्हारे पापा भी किसीके अंकल हैं। और अंकल भी किसीके पापा हैं। अपने पापा पर भी नज़र रखो, कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन कोई तुम्हारा दोस्त, कोई बच्चा तुम्हारे पापा को पूरा बग़ीचा दे जाए। ज़रा अपना घर देखो, क्या यह स्वीकृत नक़्शे के हिसाब से ही बना है ? इसकी बालकनी, इसके कमरे ज़रा ध्यान से देखो। अपने पानी-बिजली के मीटर देखो, क्या यह ठीक से चलते हैं ? उससे भी पहले यह देखो कि क्या यह चलते भी हैं ? उससे भी पहले ये देखो कि क्या ये लगे भी हैं ? अगर तुम्हारा ऐडमीशन किसी जुगाड़ या डोनेशन से हुआ है तो अपनेआप को भी सड़क पर फूल भेंट करो।
यह भी देखो कि तुम्हे फूल देना किसने सिखाया ? उसकी ख़ुदकी ज़िंदग़ी में कितनी ईमानदारी है ? कहीं कोई अपनी राजनीति के लिए तुम्हारा इस्तेमाल तो नहीं कर रहा ? अगर तुम्हे लगता है कि ऐसा हो रहा है तो सबसे पहले उन अंकल को फूल दो जो अपनी राजनीति चमकाने के लिए तुम्हे मिस्यूज़ कर रहे हैं। ध्यान रहे कि राजनीति यहां सिर्फ़ राजनीति में नहीं होती, घर-घर में होती है। अगर अंदर तुम अपने पापा की बेईमानियां छुपा लेते हो और बाहर अंकलों को फूल देते हो तो तुम भी राजनीति कर रहे हो। राजनीति इसीको कहते हैं मेरे प्यारे बच्चो।
सभी बच्चे अपने मां-बाप को महान समझते हैं। तुम जिन अंकल को फूल दे रहे हो उनके बच्चे भी अपने पापा को महान समझते आए हैं। तुम्हारे फूल से वो अंकल चोर से दिखने लगेंगे। तब उनके बच्चों को कैसा लगेगा ? महान लोग ऐसे होते हैं ? वैसे तुम्हे सोचना चाहिए कि सभी मां-बाप महान होते हैं तो फिर चोरी कौन करता है, भ्रष्टाचार कौन करता है, बलात्कार कौन करता है, टैक्स कौन चुराता है, लूटमार कौन करता है, मकान में से दुकान कौन निकालता है, मकान में नाजायज़ कमरे और बालकनी कौन बनाता है ? अगर मां-बाप यह नहीं करते तो क्या बच्चे करते हैं ? फिर तो बात तुम पर आ जाएगी, प्यारे बच्चो!
कहीं तुम किसीको फूल इसलिए तो नहीं दे रहे कि किसी टीवी वाले अंकल ने तुमसे कहा है कि अगर फूल दो तो तुम्हें टीवी पर दिखाया जाएगा ? इसका मतलब है कि तुम बस थोड़ी देर के लिए अच्छा और साहसी दिखने का अभिनय कर रहे हो। यह राजनीति भी है, पाखंड भी है, मौक़ापरस्ती भी है और बेईमानी भी है। इसके लिए ख़ुदको भी फूल दो और टीवी वाले अंकल-आंटियों को भी फूल दो। वैसे इतने फूल तुम लाओगे कहां से, प्यारे बच्चो !? इस तरह तो देश के सारे बाग़-बग़ीचे उजड़ जाएंगे।
मैं तो कहता हूं कि फूलों का मिस्यूज़ किसी भी हालत में नहीं होना चाहिए। और तुम तो ख़ुद ही फूल जैसे हो।
ज़रुरी हुआ तो फिर मिलेंगे-
तुम्हारा दोस्त,
-संजय ग्रोवर
20-02-2017
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