लघुकथा
जब भी कोई कहता है कि मैं मरकर ज़िंदा रहना चाहता हूं, मैं समझ जाता हूं कि जीतेजी ज़िंदा रहने में इसकी कोई दिलचस्पी नहीं है या फिर मरने से पहले जीने का साहस नहीं है।
जब भी कोई कहता है कि मैं मरकर ज़िंदा रहना चाहता हूं, मैं समझ जाता हूं कि जीतेजी ज़िंदा रहने में इसकी कोई दिलचस्पी नहीं है या फिर मरने से पहले जीने का साहस नहीं है।
ऐसे में मरने के बाद ज़िंदा रहने के अलावा चारा भी क्या है ?
-संजय ग्रोवर
07-10-2016
07-10-2016
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