अभी एफ़ एम सुन रहा था, एक बात सुनकर कान खड़े हो गए-‘कई ‘बुद्धिमान’ लोग समझते हैं कि दुनिया में जो भी होता है भगवान करता है.....‘.....मुझे लगा बात सुननी चाहिए, थोड़ी उम्मीद बंध गई जैसी भारत में नास्तिकता पर बनी फ़िल्मों को देखते हुए शुरुआत में बंध जाती है। मैंने आगे सुना-......‘भगवान उन्हीं की मदद करता है जो अपनी मदद ख़ुद करते हैं......’
धत्तेरे की!
नतीजा भी वही निकला जैसा पहले निकलता था।
जैसे आप कहें कि हम उसी आदमी को खाना देते हैं जिसका पेट भरा हो। जैसे कोई नर्सिंगहोम कहे कि हम तो उन्हीं पेरेंट्स् की डिलीवरी कराते हैं जो अपनी डिलीवरी ख़ुद करा लेते हैं। हम तो उन्हीं बच्चों को पैदा करते हैं जो ख़ुद पैदा हो जाते हैं। हम तो वही कपड़े धोते हैं जो पहले से धुले हों। हम तो उसी रोटी को बनाते हैं जो पहले से बनी हो। हम तो उन्हींको कर्ज़ा देते हैं जिनकी अलमारियां नोटों से भरी हों। हम तो वहीं बखिया मारते हैं जहां कभी उधड़ा न हो। हम तो उसीको पिटने से बचाते हैं जो पीट रहा हो।
ऐसे लोगों को भगवान की मदद किसलिए चाहिए जो अपनी मदद ख़ुद कर लेते हैं!? किसीको वक़्त बर्बाद करने का ज़्यादा ही शौक़ हो तो बात अलग़ है। और भगवान को क्या इतनी भी समझ नहीं कि जो अपना काम ख़ुद ही कर लेता हो उसकी मदद करना अकसर फ़ालतू में क्रेडिट लेने से ज़्यादा कुछ नहीं होता।
और भगवान के पास कोई इसलिए नहीं जाता कि मेरे साथ ज़रा परांठे बनवा दो या दाल लाके देदो। लोग अकसर ऐसे कामों के लिए जाते हैं जो वे ख़ुद नहीं कर सकते या उन्हें लगता है कि नहीं कर सकते-जैसे लड़के को पास करा दो या लड़की की शादी के लिए लड़का ढुंढवा दो। और ऐसी मांग करते हुए कोई अपनी मदद ख़ुद नहीं कर रहा होता, अकसर हाथ फैलाए, याचक की दीन-हीन मुद्रा में ही खड़ा होता है।
और भगवान उनकी मदद कर भी देगा जो अपनी मदद नहीं कर पा रहे तो भगवान का घिस क्या जाएगा ? उन्हें ऐसा बनाया किसने है ? जिन्हें ख़ुद भगवान ने दयनीय/असहाय बनाया है उनकी मदद करना तो उसका फ़र्ज़ बनता है, उसको ज़रुर करनी चाहिए। और ऐसे लोग बहुत बड़ी संख्या में हैं जिन्हें मदद की ज़रुरत है-बुज़ुर्ग हैं, छोटे बच्चे हैं, विकलांग हैं, जाति-धर्म-नस्ल-रंगभेद के मारे लोग हैं.....।
जब सब कुछ भगवान की मर्ज़ी से होता है तो साफ़ मतलब है कि इनकी दुर्दशा का ज़िम्मेदार भी भगवान है। और यह भी साफ़ है कि जब तक भगवान नहीं चाहेगा, लोग अपनी मदद भी कैसे कर लेंगे? सोच भी कैसे सकते हैं?
वैसे भगवान न तो कहीं होता है, न मदद करता है, न करेगा। अभी लड़की की हत्या हुई, हमला हुआ, भगवान नहीं आया। अगर भगवान होता तो हत्या या हमला होने ही क्यों देता !?
भारत में प्रगतिशीलता की हालत चिंताजनक है।
-संजय ग्रोवर
23-09-2016
धत्तेरे की!
नतीजा भी वही निकला जैसा पहले निकलता था।
जैसे आप कहें कि हम उसी आदमी को खाना देते हैं जिसका पेट भरा हो। जैसे कोई नर्सिंगहोम कहे कि हम तो उन्हीं पेरेंट्स् की डिलीवरी कराते हैं जो अपनी डिलीवरी ख़ुद करा लेते हैं। हम तो उन्हीं बच्चों को पैदा करते हैं जो ख़ुद पैदा हो जाते हैं। हम तो वही कपड़े धोते हैं जो पहले से धुले हों। हम तो उसी रोटी को बनाते हैं जो पहले से बनी हो। हम तो उन्हींको कर्ज़ा देते हैं जिनकी अलमारियां नोटों से भरी हों। हम तो वहीं बखिया मारते हैं जहां कभी उधड़ा न हो। हम तो उसीको पिटने से बचाते हैं जो पीट रहा हो।
ऐसे लोगों को भगवान की मदद किसलिए चाहिए जो अपनी मदद ख़ुद कर लेते हैं!? किसीको वक़्त बर्बाद करने का ज़्यादा ही शौक़ हो तो बात अलग़ है। और भगवान को क्या इतनी भी समझ नहीं कि जो अपना काम ख़ुद ही कर लेता हो उसकी मदद करना अकसर फ़ालतू में क्रेडिट लेने से ज़्यादा कुछ नहीं होता।
और भगवान के पास कोई इसलिए नहीं जाता कि मेरे साथ ज़रा परांठे बनवा दो या दाल लाके देदो। लोग अकसर ऐसे कामों के लिए जाते हैं जो वे ख़ुद नहीं कर सकते या उन्हें लगता है कि नहीं कर सकते-जैसे लड़के को पास करा दो या लड़की की शादी के लिए लड़का ढुंढवा दो। और ऐसी मांग करते हुए कोई अपनी मदद ख़ुद नहीं कर रहा होता, अकसर हाथ फैलाए, याचक की दीन-हीन मुद्रा में ही खड़ा होता है।
और भगवान उनकी मदद कर भी देगा जो अपनी मदद नहीं कर पा रहे तो भगवान का घिस क्या जाएगा ? उन्हें ऐसा बनाया किसने है ? जिन्हें ख़ुद भगवान ने दयनीय/असहाय बनाया है उनकी मदद करना तो उसका फ़र्ज़ बनता है, उसको ज़रुर करनी चाहिए। और ऐसे लोग बहुत बड़ी संख्या में हैं जिन्हें मदद की ज़रुरत है-बुज़ुर्ग हैं, छोटे बच्चे हैं, विकलांग हैं, जाति-धर्म-नस्ल-रंगभेद के मारे लोग हैं.....।
जब सब कुछ भगवान की मर्ज़ी से होता है तो साफ़ मतलब है कि इनकी दुर्दशा का ज़िम्मेदार भी भगवान है। और यह भी साफ़ है कि जब तक भगवान नहीं चाहेगा, लोग अपनी मदद भी कैसे कर लेंगे? सोच भी कैसे सकते हैं?
वैसे भगवान न तो कहीं होता है, न मदद करता है, न करेगा। अभी लड़की की हत्या हुई, हमला हुआ, भगवान नहीं आया। अगर भगवान होता तो हत्या या हमला होने ही क्यों देता !?
भारत में प्रगतिशीलता की हालत चिंताजनक है।
-संजय ग्रोवर
23-09-2016
विग्यानिक सोच
ReplyDeleteU r right im atheist
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