जो है डरा हुआ
जो है कायर
जो है परदा
जो है अभिनेता
जो है नाटकीय
जो है कर्मकांडी
जिसने ज़िंदगी को बना दिया है अभिनय
और आपको-मुझको भी लाश बना देना चाहता है सविनय
जिसे चाहिए सारे फ़ायदे
जिसने दूसरों के लिए रचे हैं सारे क़ायदे
जो दूसरों के दिमाग़ हथियाकर
उनपर लिख देता है अपना नाम
जो किसी नुक़सान की नहीं लेता ज़िम्मेदारी
छुप जाता है अपनी ही बनाई
महानता की अपनी इमेज के पिछवाड़े में
इसी ग़ैरज़िम्मेदार ने हड़प रखी है
दुनिया सारी
जो दाएं हाथ से मारता है हमें थप्पड़
और बाएं से सहलाता है
जो दुनियादारी को माफ़िया में बदलकर
समझदार कहलाता है
जो इंटरनेट पर दिखावे और मजबूरी में करता है आपसे बहस
दरअसल ठीक उसी वक्त
ऊंची-नीची होने लगती है आपकी बिजली की वोल्टेज
ख़राब होने लगते हैं आपके उपकरण
अचानक ग़ायब होने लगते हैं आपके चैक़, कोरियर और ऐसे ही कई सामान
आपके घर में घुसता है कोई लालच या आतंक लेकर निराकार का कोई एजेंट
जिसकी शक़्ल आपको कई बार देखी-भाली-सी लगती है
जिनसे पटाकर रखने की निराकार ने दी होती है आपको सलाह
वही फ़ेंकते हैं आपके आंगन में नियमित कचरा
जो दूसरों की तरलता में
ढूंढता है ठगी का रास्ता
और अपने बहुरुपिएपन को कहता है पानी
दूसरे उसे उघाड़ दें तो मरने लगती है इसकी नानी
अरे भाई तुलना तो ठीक से कर लिया करो
पानी कोई आदमी नहीं है
वह शोषित की तरह है, उसे पता भी नहीं
कि उसे किसमें मिलाया जा रहा है
वह तो अकसर होता है शिकार
और आप बच निकलते हैं हर बार
निराकार
जो राजधानी में अपनी सौम्य कोठियों में
करता है विनम्र अय्याशी
जिसके एवज में दूसरे आए दिन देते हैं
अपने चेहरों की तलाशी
उनके चेहरों पर जैसे छप गए हैं तेज़ाब और पेशाब
जो ख़ुदको मिटाकर बनाए है बेशर्म की ख़ुशबू रंगो आब
अरे! ज़रा छः छः महीने के लिए
ड्यूटी ही बदल लिया करो उनकी अपनी
छः महीने राजधानी की कोठी में रहें वो
और आप पिसें जंगल में जैसे पिसती है चटनी
निराकार के लोग घर-घर में
बच्चों में डालते हैं
ग़ुलामी के संस्कार
चढ़ा देते हैं चश्मे अपने
कर देते हैं उनकी आंखों को बेकार
उनका रिमोट रहता है निराकार के हाथ में
ख़ुश होता है बंधुआ परिवार
निराकार ही तो है अंधविश्वासियों का चश्मा
वही तो है उनकी साकार मूर्खताओं की प्रेरणा और शक्ति
देखो, कैसे ख़ुद ही बेवक़ूफ़ियां सिखाकर
ख़ुद ही डांट रहा है उनको
और वे सर झुकाकर सुन रहे हैं आज्ञाकारी
क्या ग़ज़ब है भक्ति
निराकार ठीक आपके सामने है
मगर नहीं है, कहीं नहीं है
क्योंकि आपके पास समझने की दृष्टि
और पकड़ने का साहस नहीं है
-संजय ग्रोवर
14-05-2016
जो है कायर
जो है परदा
जो है अभिनेता
जो है नाटकीय
जो है कर्मकांडी
जिसने ज़िंदगी को बना दिया है अभिनय
और आपको-मुझको भी लाश बना देना चाहता है सविनय
जिसे चाहिए सारे फ़ायदे
जिसने दूसरों के लिए रचे हैं सारे क़ायदे
जो दूसरों के दिमाग़ हथियाकर
उनपर लिख देता है अपना नाम
जो किसी नुक़सान की नहीं लेता ज़िम्मेदारी
छुप जाता है अपनी ही बनाई
महानता की अपनी इमेज के पिछवाड़े में
इसी ग़ैरज़िम्मेदार ने हड़प रखी है
दुनिया सारी
जो दाएं हाथ से मारता है हमें थप्पड़
और बाएं से सहलाता है
जो दुनियादारी को माफ़िया में बदलकर
समझदार कहलाता है
जो इंटरनेट पर दिखावे और मजबूरी में करता है आपसे बहस
दरअसल ठीक उसी वक्त
ऊंची-नीची होने लगती है आपकी बिजली की वोल्टेज
ख़राब होने लगते हैं आपके उपकरण
अचानक ग़ायब होने लगते हैं आपके चैक़, कोरियर और ऐसे ही कई सामान
आपके घर में घुसता है कोई लालच या आतंक लेकर निराकार का कोई एजेंट
जिसकी शक़्ल आपको कई बार देखी-भाली-सी लगती है
जिनसे पटाकर रखने की निराकार ने दी होती है आपको सलाह
वही फ़ेंकते हैं आपके आंगन में नियमित कचरा
जो दूसरों की तरलता में
ढूंढता है ठगी का रास्ता
और अपने बहुरुपिएपन को कहता है पानी
दूसरे उसे उघाड़ दें तो मरने लगती है इसकी नानी
अरे भाई तुलना तो ठीक से कर लिया करो
पानी कोई आदमी नहीं है
वह शोषित की तरह है, उसे पता भी नहीं
कि उसे किसमें मिलाया जा रहा है
वह तो अकसर होता है शिकार
और आप बच निकलते हैं हर बार
निराकार
जो राजधानी में अपनी सौम्य कोठियों में
करता है विनम्र अय्याशी
जिसके एवज में दूसरे आए दिन देते हैं
अपने चेहरों की तलाशी
उनके चेहरों पर जैसे छप गए हैं तेज़ाब और पेशाब
जो ख़ुदको मिटाकर बनाए है बेशर्म की ख़ुशबू रंगो आब
अरे! ज़रा छः छः महीने के लिए
ड्यूटी ही बदल लिया करो उनकी अपनी
छः महीने राजधानी की कोठी में रहें वो
और आप पिसें जंगल में जैसे पिसती है चटनी
निराकार के लोग घर-घर में
बच्चों में डालते हैं
ग़ुलामी के संस्कार
चढ़ा देते हैं चश्मे अपने
कर देते हैं उनकी आंखों को बेकार
उनका रिमोट रहता है निराकार के हाथ में
ख़ुश होता है बंधुआ परिवार
निराकार ही तो है अंधविश्वासियों का चश्मा
वही तो है उनकी साकार मूर्खताओं की प्रेरणा और शक्ति
देखो, कैसे ख़ुद ही बेवक़ूफ़ियां सिखाकर
ख़ुद ही डांट रहा है उनको
और वे सर झुकाकर सुन रहे हैं आज्ञाकारी
क्या ग़ज़ब है भक्ति
निराकार ठीक आपके सामने है
मगर नहीं है, कहीं नहीं है
क्योंकि आपके पास समझने की दृष्टि
और पकड़ने का साहस नहीं है
-संजय ग्रोवर
14-05-2016
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