जो होता आया है वही हो रहा है।
आज भी कई लोग कह रहे हैं कि धर्म तो महान है, ग्रंथ तो ग़ज़ब के हैं मगर लोगों ने उन्हें ठीक से समझा नहीं है इसलिए वे हत्याएं कर रहे हैं।
कितना अजीब है कि अभी भी हमें चिंता लोगों, बच्चों या इंसानियत को बचाने की नहीं, धर्म और ग्रंथ को बचाने की लगी है!
अगर धर्म और ग्रंथ को लोगों ने ठीक से समझा नहीं है और वे सदियों से इनके लिए या इनके नाम पर हत्याएं, बलात्कार और लूटपाट करते चले आ रहे हैं तो वह ग़लती भी किसकी है? साफ़ है कि हम अपनी बात ठीक से नहीं कह पाए, हमारी भाषा कुछ गड़बड़ रही होगी, बात ठीक से लोगों तक पहुंची नहीं होगी ? तो हम इतना तो स्वीकार करें कि हम ठीक से लिख नहीं पाए, कह नहीं पाए, इसमें बदलाव होना चाहिए, इसे ठीक करके ऐसी भाषा में लिखा जाए कि लोगों को वही समझ में आए जो आप/हम समझाना चाह रहे हैं।
मगर धर्म आदमी को और कुछ दे न दे, इतना अहंकार ज़रुर दे देता है कि वह इस बात को स्वीकार करने को भी तैयार नहीं होता कि उसके धर्म में कोई कमी हो सकती है।
दूसरी दिलचस्प बात यह है कि हममें से जो लोग हत्या करनेवालों को यह कहकर दोष दे रहे हैं कि उन्होंने धर्म या ग्रंथ को ठीक से समझा नहीं है, उन(हम)में से अधिकांश ‘धर्म को ठीक से समझनेवाले’ क्या करते आए हैं ? लूटपाट और बलात्कार करनेवाले, माल और टैक्स चुरानेवाले, इमारतों और खाद्य-पदार्थों में मिलावट करने वाले, ऊंच-नीच और छोटा-बड़ा बनानेवाले कौन लोग हैं ? वे ज़्यादातर वही लोग हैं जो धर्म को ‘ठीक से समझ’ गए हैं। ‘धर्म को ठीेक से समझनेवाले’ वे लोग भी हैं जिन्होंने जाति, ऊंच-नीच और छुआछूत बनाकर लोगों की अनगिनत पीढ़ियों का जीतेजी मार डाला है। शारीरिक हिंसा से एक व्यक्ति एक बार मरता है, लेकिन इस मानसिक-मनोवैज्ञानिक-मनोविकृत-रणनीतिक हिंसा से लोगों की आनेवाली पीड़ियां भी पैदा होने से पहले मर जातीं हैं।
सवाल धर्म और ग्रंथ को ठीक से समझने का नहीं, अपनी नीयत को ठीक से समझने का है।
-संजयग्रोवर
18-12-2015
ON FACEBOOK
आज भी कई लोग कह रहे हैं कि धर्म तो महान है, ग्रंथ तो ग़ज़ब के हैं मगर लोगों ने उन्हें ठीक से समझा नहीं है इसलिए वे हत्याएं कर रहे हैं।
कितना अजीब है कि अभी भी हमें चिंता लोगों, बच्चों या इंसानियत को बचाने की नहीं, धर्म और ग्रंथ को बचाने की लगी है!
अगर धर्म और ग्रंथ को लोगों ने ठीक से समझा नहीं है और वे सदियों से इनके लिए या इनके नाम पर हत्याएं, बलात्कार और लूटपाट करते चले आ रहे हैं तो वह ग़लती भी किसकी है? साफ़ है कि हम अपनी बात ठीक से नहीं कह पाए, हमारी भाषा कुछ गड़बड़ रही होगी, बात ठीक से लोगों तक पहुंची नहीं होगी ? तो हम इतना तो स्वीकार करें कि हम ठीक से लिख नहीं पाए, कह नहीं पाए, इसमें बदलाव होना चाहिए, इसे ठीक करके ऐसी भाषा में लिखा जाए कि लोगों को वही समझ में आए जो आप/हम समझाना चाह रहे हैं।
मगर धर्म आदमी को और कुछ दे न दे, इतना अहंकार ज़रुर दे देता है कि वह इस बात को स्वीकार करने को भी तैयार नहीं होता कि उसके धर्म में कोई कमी हो सकती है।
दूसरी दिलचस्प बात यह है कि हममें से जो लोग हत्या करनेवालों को यह कहकर दोष दे रहे हैं कि उन्होंने धर्म या ग्रंथ को ठीक से समझा नहीं है, उन(हम)में से अधिकांश ‘धर्म को ठीक से समझनेवाले’ क्या करते आए हैं ? लूटपाट और बलात्कार करनेवाले, माल और टैक्स चुरानेवाले, इमारतों और खाद्य-पदार्थों में मिलावट करने वाले, ऊंच-नीच और छोटा-बड़ा बनानेवाले कौन लोग हैं ? वे ज़्यादातर वही लोग हैं जो धर्म को ‘ठीक से समझ’ गए हैं। ‘धर्म को ठीेक से समझनेवाले’ वे लोग भी हैं जिन्होंने जाति, ऊंच-नीच और छुआछूत बनाकर लोगों की अनगिनत पीढ़ियों का जीतेजी मार डाला है। शारीरिक हिंसा से एक व्यक्ति एक बार मरता है, लेकिन इस मानसिक-मनोवैज्ञानिक-मनोविकृत-रणनीतिक हिंसा से लोगों की आनेवाली पीड़ियां भी पैदा होने से पहले मर जातीं हैं।
सवाल धर्म और ग्रंथ को ठीक से समझने का नहीं, अपनी नीयत को ठीक से समझने का है।
-संजयग्रोवर
18-12-2015
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लोग जो अपराध कर रहे हैं...
ReplyDeleteमैं सोचता हूं कि उसमें धर्म या धर्म ग्रंथों का कोई दोष नहीं है...
धर्म ग्रंथ तो केवल राह दिखाते हैं। शायद अगर ये ग्रंथ न होते तो आज संसार में अपराध और पाप और अधिक होता...
जय मां हाटेशवरी....
आप ने लिखा...
कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
दिनांक 23/11/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर... लिंक की जा रही है...
इस चर्चा में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
कुलदीप ठाकुर...