कभी कहीं कह दो कि पूजा ख़तरनाक़ है चाहे पत्थर की हो, चाहे गुरु की हो, चाहे मां-बाप की हो तो ज़ाहिर है कि कई तरह के लोगों को, कई तरह के आदियों-वादियों को बुरा लगता होगा। लेकिन यह भी तो समझना चाहिए कि पूजा आखि़र है क्या ? पूजा किसीको ख़ुश करने का सबसे आसान तरीक़ा है। पूजा एकतरफ़ा बातचीत है। मज़े की बात तो यह है कि जिसकी पूजा की जाती है उसकी तो स्वीकृति/अस्वीकृति भी नहीं पूछी जाती। पूजा एकतरफ़ा बातचीत है। जिसका आदर करने का दावा किया जा रहा है उसकी पसंद/नापसंद की भी चिंता नहीं की जाती। पूजा एक असमानता का संबंध है। कुछ कर्मकांड हैं जिन्हें करने में किसी तरह का कोई सामाजिक ख़तरा नहीं है। बल्कि मु्फ्त की तारीफ़ ज़रुर मिलती है।
और पूजा से मां-बाप की ज़रुरतें पूरी हो जाएंगी क्या !? करके देखना चाहिए। सुबह चार बजे उठकर मां-बाप की आरती वगैरह उतारें और दिन-भर उन्हें पूछें नहीं, न खाने को दें न पीने को, न बात करें, न पास बैठें। यही तो पूजा है। इससे मां-बाप का काम चल जाएगा क्या ?
आप पूरे देश में पूछते घूमिए, दस-पचास लोग भी मिल जाएं जो कहते हों कि मां-बाप की बात नहीं माननी चाहिए, मां-बाप महान नहीं होते, मां-बाप को घर से निकाल देना चाहिए........ऐसा कहता है क्या कोई ? उसके बाद सुबह-शाम आप ज़रा पार्कों में चले जाईए, वृद्धाश्रमों में चले जाईए-वहां बूढ़े-बूढ़ियां बैठे अपने बहू-बेटों को रो रहे होते हैं। ये कौन लोग हैं ? ये क्या स्विटज़रलैंड से आए हैं !? या फ्रांस ने हमारी संस्कृति को बदनाम करने को भेज दिए हैं !? भारत में तो कोई मां-बाप का अनादर करता नहीं। फिर ये बूढ़े-बूढ़ियां कहां से टपकते चले जाते हैं ? सही बात यह है कि हम लोग झूठा सम्मान करने में अति-ऐक्सपर्ट लोग हैं।
एक बात और समझ से बाहर है। एकाएक, बैठे-बिठाए किसी दिन आप मां-बाप बनते हैं और महान हो जाते हैं!! कैसे!? दुनिया-भर में गुंडे हैं, बदमाश हैं, स्मगलर हैं, दंगाई हैं, बलात्कारी हैं, आतंकवादी हैं और पता नहीं क्या-क्या हैं.........उनमें से भी ज़्यादातर लोग किसी न किसीके मां-बाप हैं। वे क्यों महान नहीं हैं ? अगर महानता की यही कसौटी है तो उनका भी आदर कीजिए। उन्हें तो आप ग़ालियां भी दे देते हैं!! वे तथाकथित ऊंची जातियां जिन्होंने किन्ही तथाकथित नीची जातियों को ग़ुलाम बनाया, वे भी तो किसीके मां-बाप हैं। वे महान क्यों नहीं हैं ? ये क्या कसौटी हुई कि सिर्फ़ आपके ही मां-बाप महान हैं !? समझ में नहीं आता कि आदमी में ऐसी कौन-सी प्रोग्रामिंग हो रखी है कि इधर उसका बच्चा पैदा होना शुरु होगा और उधर मम्मी-पापा महान होना शुरु हो जाएंगे !?
और हैरानी होती है कि ऐसी अतार्किक बातें वे लोग भी करते हैं जो अपना या अपने समाज का जीवन बदलने के लिए कुछ भी बदलने को तैयार हैं मगर मां-बाप की बात आते ही फिर परंपरा को पकड़कर लटक जाते हैं ? अगर तुम्हे परंपरा में इतनी दिलचस्पी है तो परंपरानुसार ग़ुलामों की तरह रहो फिर। यहां तो सब परंपराएं ग़ुलामी की ही परंपराएं हैं।
तो मैं यह कह रहा था कि पूजा में विचार का, बुद्धि का, सवाल उठाने का कोई स्थान नहीं है। पूजा न करने का यह मतलब नहीं है कि मां-बाप से बदतमीज़ी करें, उन्हें परेशान करें, उनका तिरस्कार करें, उन्हें खाने-पीने को न दें। वैसे यह सब तो पूजा के साथ-साथ भी किया जा सकता है। होता भी होगा। पूजा न करने का मतलब है बराबरी के स्तर पर बातचीत। न कोई छोटा है न बड़ा। न कोई ऊंचा है न नीचा। ऐसे संबंध में बात का और तर्क का महत्व है, व्यक्ति की हैसियत या उम्र का नहीं। जिसकी भी बात जायज़ है, मान ली जाएगी।
वरना तो पूजा करने वाले यही करेंगे कि बाप कहेगा कि जाओ बेटा मां का सर काट लाओ, और ये चल पड़ेंगे सर काटने। लो श्रद्धेय पिताजी, श्रद्धेय माताजी का सर हाज़िर है।
और बाद में सर काटने वालों की भी पूजा होगी।
-संजय ग्रोवर
20-08-2015
और पूजा से मां-बाप की ज़रुरतें पूरी हो जाएंगी क्या !? करके देखना चाहिए। सुबह चार बजे उठकर मां-बाप की आरती वगैरह उतारें और दिन-भर उन्हें पूछें नहीं, न खाने को दें न पीने को, न बात करें, न पास बैठें। यही तो पूजा है। इससे मां-बाप का काम चल जाएगा क्या ?
आप पूरे देश में पूछते घूमिए, दस-पचास लोग भी मिल जाएं जो कहते हों कि मां-बाप की बात नहीं माननी चाहिए, मां-बाप महान नहीं होते, मां-बाप को घर से निकाल देना चाहिए........ऐसा कहता है क्या कोई ? उसके बाद सुबह-शाम आप ज़रा पार्कों में चले जाईए, वृद्धाश्रमों में चले जाईए-वहां बूढ़े-बूढ़ियां बैठे अपने बहू-बेटों को रो रहे होते हैं। ये कौन लोग हैं ? ये क्या स्विटज़रलैंड से आए हैं !? या फ्रांस ने हमारी संस्कृति को बदनाम करने को भेज दिए हैं !? भारत में तो कोई मां-बाप का अनादर करता नहीं। फिर ये बूढ़े-बूढ़ियां कहां से टपकते चले जाते हैं ? सही बात यह है कि हम लोग झूठा सम्मान करने में अति-ऐक्सपर्ट लोग हैं।
एक बात और समझ से बाहर है। एकाएक, बैठे-बिठाए किसी दिन आप मां-बाप बनते हैं और महान हो जाते हैं!! कैसे!? दुनिया-भर में गुंडे हैं, बदमाश हैं, स्मगलर हैं, दंगाई हैं, बलात्कारी हैं, आतंकवादी हैं और पता नहीं क्या-क्या हैं.........उनमें से भी ज़्यादातर लोग किसी न किसीके मां-बाप हैं। वे क्यों महान नहीं हैं ? अगर महानता की यही कसौटी है तो उनका भी आदर कीजिए। उन्हें तो आप ग़ालियां भी दे देते हैं!! वे तथाकथित ऊंची जातियां जिन्होंने किन्ही तथाकथित नीची जातियों को ग़ुलाम बनाया, वे भी तो किसीके मां-बाप हैं। वे महान क्यों नहीं हैं ? ये क्या कसौटी हुई कि सिर्फ़ आपके ही मां-बाप महान हैं !? समझ में नहीं आता कि आदमी में ऐसी कौन-सी प्रोग्रामिंग हो रखी है कि इधर उसका बच्चा पैदा होना शुरु होगा और उधर मम्मी-पापा महान होना शुरु हो जाएंगे !?
और हैरानी होती है कि ऐसी अतार्किक बातें वे लोग भी करते हैं जो अपना या अपने समाज का जीवन बदलने के लिए कुछ भी बदलने को तैयार हैं मगर मां-बाप की बात आते ही फिर परंपरा को पकड़कर लटक जाते हैं ? अगर तुम्हे परंपरा में इतनी दिलचस्पी है तो परंपरानुसार ग़ुलामों की तरह रहो फिर। यहां तो सब परंपराएं ग़ुलामी की ही परंपराएं हैं।
तो मैं यह कह रहा था कि पूजा में विचार का, बुद्धि का, सवाल उठाने का कोई स्थान नहीं है। पूजा न करने का यह मतलब नहीं है कि मां-बाप से बदतमीज़ी करें, उन्हें परेशान करें, उनका तिरस्कार करें, उन्हें खाने-पीने को न दें। वैसे यह सब तो पूजा के साथ-साथ भी किया जा सकता है। होता भी होगा। पूजा न करने का मतलब है बराबरी के स्तर पर बातचीत। न कोई छोटा है न बड़ा। न कोई ऊंचा है न नीचा। ऐसे संबंध में बात का और तर्क का महत्व है, व्यक्ति की हैसियत या उम्र का नहीं। जिसकी भी बात जायज़ है, मान ली जाएगी।
वरना तो पूजा करने वाले यही करेंगे कि बाप कहेगा कि जाओ बेटा मां का सर काट लाओ, और ये चल पड़ेंगे सर काटने। लो श्रद्धेय पिताजी, श्रद्धेय माताजी का सर हाज़िर है।
और बाद में सर काटने वालों की भी पूजा होगी।
-संजय ग्रोवर
20-08-2015
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