व्यंग्य
हैरानी होती है कि भगवान को माननेवाले बहुत सारे लोग भी आज़ादी का दिन मनाते हैं!!
उनको भी लगता होगा कि देश कभी ग़ुलाम था। उनके भगवान के होते हुए भी देश ग़ुलाम था। जैसा कि धार्मिक लोग बार-बार घोषणा करते हैं कि भगवान की मर्ज़ी के बिना पट्ठा भी नहीं हिलता ; तो ज़ाहिर है कि भगवान की मर्ज़ी से ही देश ग़ुलाम हुआ होगा।
मगर मैंने कहीं नहीं पढ़ा कि भक्त लोग देश को आज़ाद कराने के लिए भगवान के पास गए। लेकिन अंग्रेज़ो से वे, जैसा कि इतिहास में लिखा बताते हैं, बहुत लड़े, लड़ते ही रहे। इससे कभी-कभी यह लगता है कि या तो वे अंग्रेजों को ही भगवान मानते थे या उन्हें भगवान से बड़ा मानते थे। वरना अंग्रेजो से लड़ने की क्या तुक थी ? जिस दर्ज़ी ने आपका पाजामा ख़राब सिल दिया हो आप लड़ने को सीधे उसके पास न जाकर उसके किसी कारीगर के पास पहुंच जाएं तो आप ख़ुद ही, ख़ुदको अजीब लगने लगेंगे। लेकिन भगवान के मामले में हम सारी हरक़तें अजीब-अजीब-सी करते हैं।
जब भगवान ने देश को ग़ुलाम बनाया या बनवाया तो कुछ सोचकर ही ऐसा किया होगा ! मगर भक्त लोग अजीब हैं, निकल पड़े देश को आज़ाद कराने। ये लोग दूसरों को हमेशा समझाते हैं कि भगवान की मर्ज़ी के खि़लाफ़ कुछ नहीं करना चाहिए मगर ख़ुद सारे काम उसकी मर्ज़ी के खि़लाफ़ करते हैं।
भगवान कौन-सा कम है !? चलो, ग़ुलाम बनाया तो बनाया, जब लोगों को आदत पड़ ही गई थी, उन्हें मज़ा आने लगा ग़ुलामी में तो उसे आज़ादी सूझने लगी। तब उसने पत्ता हिलाया और आज़ादी की जंग छिड़वा दी ! पट्ठे भी तो भगवान के अपने ही हैं, जब चाहे हिला सकता है।
अब मुझे यह लगता है कि भगवान ने आदमी को मज़े लेने के लिए, अपना टाइम पास करने के लिए बनाया है तो क्या ग़लत लगता है ?
मैं छोटा ही था और छत पर धूप सेंक रहा था कि पड़ोस की छत पर नज़र चली गई। वहां एक बिल्ली, चूहे से खेल रही थी। बार-बार उसे छोड़ देती। चूहा किसी सुरक्षित जगह की तलाश में भागता और जैसे ही वह उस जगह में प्रवेश करने को होता, ऐन उसी जगह जाकर वह उसे फिर दबोच लेती । चूहे का जो हुआ होगा सो हुआ होगा, मैं बुरी तरह घबरा गया। लेकिन धार्मिक दृष्टि से देखें तो बिल्ली चूहे के साथ इस बेदर्दी से खेल रही थी तो भगवान की मर्ज़ी से खेल रही थी। भगवान ख़ुद ही आदमी के साथ यही खेल कर रहा है। ख़ुद ही ग़ुलाम बनाता है, ख़ुद ही आज़ाद करा देता है।
अब तो देश में मनोचिकित्सक भी भगवान की कृपा से अच्छी-ख़ासी मात्रा में हो गए हैं ; अपने ही बनाए मनोचिकित्सकों से कंसल्ट करने में दिक़्क़त क्या है !? या हो सकता है कि भगवान जानता ही हो कि मेरे बनाए लोग मुझसे अलग कैसे हो सकते हैं, इसलिए डरता हो !!
लोग अभी भी आज़ादी की वार्षिक गांठे मनाते हैं!! बताओ, एक तो भगवान की मर्ज़ी के खि़लाफ़ आपने देश को आज़ाद कराया, अब त्यौहार भी मना रहे हो!! भगवान को चिढ़ा रहे हो क्या !?
न न, मैं भगवान को नहीं चिढ़ा रहा। मैं भगवान को मानता ही नहीं।
आपको ज़रुर मानता हूं।
-संजय ग्रोवर
15-08-2015
हैरानी होती है कि भगवान को माननेवाले बहुत सारे लोग भी आज़ादी का दिन मनाते हैं!!
उनको भी लगता होगा कि देश कभी ग़ुलाम था। उनके भगवान के होते हुए भी देश ग़ुलाम था। जैसा कि धार्मिक लोग बार-बार घोषणा करते हैं कि भगवान की मर्ज़ी के बिना पट्ठा भी नहीं हिलता ; तो ज़ाहिर है कि भगवान की मर्ज़ी से ही देश ग़ुलाम हुआ होगा।
मगर मैंने कहीं नहीं पढ़ा कि भक्त लोग देश को आज़ाद कराने के लिए भगवान के पास गए। लेकिन अंग्रेज़ो से वे, जैसा कि इतिहास में लिखा बताते हैं, बहुत लड़े, लड़ते ही रहे। इससे कभी-कभी यह लगता है कि या तो वे अंग्रेजों को ही भगवान मानते थे या उन्हें भगवान से बड़ा मानते थे। वरना अंग्रेजो से लड़ने की क्या तुक थी ? जिस दर्ज़ी ने आपका पाजामा ख़राब सिल दिया हो आप लड़ने को सीधे उसके पास न जाकर उसके किसी कारीगर के पास पहुंच जाएं तो आप ख़ुद ही, ख़ुदको अजीब लगने लगेंगे। लेकिन भगवान के मामले में हम सारी हरक़तें अजीब-अजीब-सी करते हैं।
जब भगवान ने देश को ग़ुलाम बनाया या बनवाया तो कुछ सोचकर ही ऐसा किया होगा ! मगर भक्त लोग अजीब हैं, निकल पड़े देश को आज़ाद कराने। ये लोग दूसरों को हमेशा समझाते हैं कि भगवान की मर्ज़ी के खि़लाफ़ कुछ नहीं करना चाहिए मगर ख़ुद सारे काम उसकी मर्ज़ी के खि़लाफ़ करते हैं।
भगवान कौन-सा कम है !? चलो, ग़ुलाम बनाया तो बनाया, जब लोगों को आदत पड़ ही गई थी, उन्हें मज़ा आने लगा ग़ुलामी में तो उसे आज़ादी सूझने लगी। तब उसने पत्ता हिलाया और आज़ादी की जंग छिड़वा दी ! पट्ठे भी तो भगवान के अपने ही हैं, जब चाहे हिला सकता है।
अब मुझे यह लगता है कि भगवान ने आदमी को मज़े लेने के लिए, अपना टाइम पास करने के लिए बनाया है तो क्या ग़लत लगता है ?
मैं छोटा ही था और छत पर धूप सेंक रहा था कि पड़ोस की छत पर नज़र चली गई। वहां एक बिल्ली, चूहे से खेल रही थी। बार-बार उसे छोड़ देती। चूहा किसी सुरक्षित जगह की तलाश में भागता और जैसे ही वह उस जगह में प्रवेश करने को होता, ऐन उसी जगह जाकर वह उसे फिर दबोच लेती । चूहे का जो हुआ होगा सो हुआ होगा, मैं बुरी तरह घबरा गया। लेकिन धार्मिक दृष्टि से देखें तो बिल्ली चूहे के साथ इस बेदर्दी से खेल रही थी तो भगवान की मर्ज़ी से खेल रही थी। भगवान ख़ुद ही आदमी के साथ यही खेल कर रहा है। ख़ुद ही ग़ुलाम बनाता है, ख़ुद ही आज़ाद करा देता है।
अब तो देश में मनोचिकित्सक भी भगवान की कृपा से अच्छी-ख़ासी मात्रा में हो गए हैं ; अपने ही बनाए मनोचिकित्सकों से कंसल्ट करने में दिक़्क़त क्या है !? या हो सकता है कि भगवान जानता ही हो कि मेरे बनाए लोग मुझसे अलग कैसे हो सकते हैं, इसलिए डरता हो !!
लोग अभी भी आज़ादी की वार्षिक गांठे मनाते हैं!! बताओ, एक तो भगवान की मर्ज़ी के खि़लाफ़ आपने देश को आज़ाद कराया, अब त्यौहार भी मना रहे हो!! भगवान को चिढ़ा रहे हो क्या !?
न न, मैं भगवान को नहीं चिढ़ा रहा। मैं भगवान को मानता ही नहीं।
आपको ज़रुर मानता हूं।
-संजय ग्रोवर
15-08-2015
No comments:
Post a Comment