भगवान के बाद हमारे अंधविश्वास के दूसरे बड़े साधनों और कारणों में होते हैं-महापुरुष, सेलेब्रिटीज़, आयकन्स्, स्टार्स इत्यादि। इनके बारे में भी कवि, लेखक, मीडिया आदि कुछ-कुछ ऐसा ही वर्णन करते हैं जैसा भगवानों का किया जाता है। वे इनकी सफ़लता और संघर्ष का किंचित भीना-भीना वर्णन करते हैं। मुश्क़िल यह है कि सफ़लता तो फ़िर भी दिखाई पड़ती है, मगर संघर्ष !!
दूसरे का संघर्ष आप जान भी कैसे सकते हैं!? या तो आप उसके बिलकुल क़रीब रहे हों, और यह भी काफ़ी नहीं, आपके पास संघर्ष को परखने-समझने की अपनी एक दृष्टि भी होनी चाहिए। वरना मीडिया कथित बड़े लोगों के बारे में जो बता देता है वही आपको मानना पड़ता है। संघर्ष और सफ़लता पर हमने कितना चिंतन किया है पता नहीं, इनके दो ही रुपों पर बात करते ज़्यादातर लोगों को देखा गया है-पहले एक आदमी के पास पैसा नहीं था अब पैसा आ गया और पहले किसीका नाम नहीं था अब उसका नाम हो गया।
कहा जाता है कि इन महापुरुषों और स्टार्स से आम आदमी प्रेरणा लेता है, ताक़त पाता है। सवाल यह है कि जिस व्यक्ति के संघर्ष को ज़्यादातर लोगों ने क़रीब से कभी देखा ही नहीं, उनसे क्या और कैसी प्रेरणा कोई लेगा!? जो लोग स्टूडियों, सभाओं और डायसो पर थोड़ी-थोड़ी देर बाद पानी के घूंट लेते हैं उनके बारे में बताया गया होता है कि वे कड़े परिश्रम और निरंतर प्रयासों के फ़लस्वरुप यहां तक पहुंचे हैं! निश्चित ही शारीरिक मेहनत, कम या ज़्यादा, उन्होंने की होती है। स्त्रियों को पुरुषों के मुक़ाबले ज़्यादा परेशानियां उठानी पड़ती है, इसमें भी कोई शक़ नहीं। और जिन लोगों को हाशिए पर रखा गया, जिन्हें मेहनत के बदले ग़ालियां मिलती रहीं, उनकी व्यथा तो ख़ैर हम क्या खाकर समझ पाएंगे। फ़िर भी शारीरिक मेहनत के सामने क्या सब कुछ नगण्य है!?
फ़िर तो प्रेरणा अपराधियों और आतंकवादियों से भी ली जा सकती है। संभवतः वे दूसरों से ज़्यादा मेहनत करते हैं, ख़तरे भी ज़्यादा उठाते हैं, समझौते भी शायद कम ही करते होंगे। फ़िर क्या है जिससे प्रेरणा ली जाए!? कितने लोगों ने किसी आजके आयकन को किसी लाइन में लगकर नियम-क़ायदे से अपना काम कराते देखा होगा !? आखि़र बर्थ सर्टीफ़िकेट, डैथ सर्टीफ़िकेट तो वे भी बनवाते होंगे! कैसे, कब होते हैं उनके काम? और ऐसे लोगों से प्रेरणा लेने वालों को उनसे नियम-क़ानून मानने की प्रेरणा कैसे मिल सकती है? कोई-कोई सेलेब्रिटी तो इसी बात पर नाराज़ हो जाते हैं कि उनकी तलाशी क्यों ली गई? कल यही आदमी बताएगा कि क़ानून के लिए सब बराबर हैं तो उससे क्या प्रेरणा मिलेगी, किस तरह की ताक़त मिलेगी?
प्रेरणा लेना चाहे तो आप उस आदमी से भी ले सकते हैं जिसके पास कोई ताक़त नहीं, कोई हैसियत नहीं, फ़िर भी वह, सभी ग़लत रास्तों से बचते हुए, सुविधाओं को दरकिनार करते हुए, कष्ट उठाते हुए और कुछ नए कष्टों में पड़ जाने की संभावनाओं के बीच, मीडिया और इतिहास में नाम आ जाने की कोई भी संभावना और गारंटी न होने के बावजूद भी नियम और ईमानदारी से अपना काम कराता है।
बड़ा तो उसका संघर्ष और सफ़लता है, आप और मैं उसे नहीं जानते, इसमें उसकी क्या ग़लती है?
ज़्यादातर लोग, आप और मैं भी, अपने भीतर जाकर ख़ुदको ईमानदारी से समझे तो, सफ़लता और मशहूरी चाहते ही इसीलिए हैं कि उनके बहुत सारे काम घर बैठे हो जाया करेंगे, बहुत सारे लोग जो कल तक उनसे बड़े या बराबर नज़र आते थे, अब उनसे छोटे नज़र आएंगे, उन्हें सलाम बजाएंगे, उनके चक्कर काटेंगे। सफ़लता के संघर्ष में, ईमानदारी और बेईमानी के बाद, दो और तरीक़े भी हैं। एक तो यह है कि आपके अपने कुछ विचार हैं और आप धीरे-धीरे लोगों को, दलीलें दे-देकर, उदाहरण दे-देकर, उन नए या अलग तरह के विचारों का क़ायल कर दें। या जो दूसरा पारंपरिक और आसान तरीक़ा है-जहां जाएं, जैसे वहां लोग हों, जो उनमें पहले से स्वीकृत मान्यताएं और मानसिकताएं हैं, उन्हींके अनुरुप बातें कहना शुरु करदें।
बुद्ध हों, अंबेडकर हों, ओशो हों......उनका तरीक़ा पहला तरीक़ा ही हो सकता है। और दूसरे तरीक़े से सफ़लता का आनंद लेते तो हम रोज़ाना ही लोगों को देखते हैं। तीसरे तरह का एक और संघर्ष और सफ़लता भी आप देखते होंगे। कई बार सारे प्रचार माध्यम एकाएक किसी व्यक्ति के बारे में एक इमेज बरसाना शुरु कर देते हैं कि फ़लां साब नयी सोच, नयी उम्मीद वगैरह-वगैरह लेकर आए हैं। मगर जब ध्यान से उन्हें सुनो तो समझ में आता है कि भाईसाहब बातें तो वही सड़ी-गली, पुरानी ही घसीट रहे हैं, तो नई सोच क्या ऊपर-नीचे की पट्टियों पर लिख देने, बड़े-बड़े कैप्शन्स् और ग्राफ़िक्स् में दिखा देने से हो जाएगी?
सफ़लता हो कि संघर्ष, ईमानदारी हो कि बेईमानी, शारीरिक मेहनत हो या वैचारिक चिंतन, भगवान हो कि आयकन......कोई भी इतना निरापद, सच्चा और बहस व शक़ के दायरे से इस तरह बाहर नहीं है कि उसे बिना आंखे और दिमाग़ खोलकर देखे, चुपचाप आंखें मूंदकर उसपर साइन कर दिए जाएं, उसे पास कर दिया जाए।
-संजय ग्रोवर
15-09-2013
दूसरे का संघर्ष आप जान भी कैसे सकते हैं!? या तो आप उसके बिलकुल क़रीब रहे हों, और यह भी काफ़ी नहीं, आपके पास संघर्ष को परखने-समझने की अपनी एक दृष्टि भी होनी चाहिए। वरना मीडिया कथित बड़े लोगों के बारे में जो बता देता है वही आपको मानना पड़ता है। संघर्ष और सफ़लता पर हमने कितना चिंतन किया है पता नहीं, इनके दो ही रुपों पर बात करते ज़्यादातर लोगों को देखा गया है-पहले एक आदमी के पास पैसा नहीं था अब पैसा आ गया और पहले किसीका नाम नहीं था अब उसका नाम हो गया।
कहा जाता है कि इन महापुरुषों और स्टार्स से आम आदमी प्रेरणा लेता है, ताक़त पाता है। सवाल यह है कि जिस व्यक्ति के संघर्ष को ज़्यादातर लोगों ने क़रीब से कभी देखा ही नहीं, उनसे क्या और कैसी प्रेरणा कोई लेगा!? जो लोग स्टूडियों, सभाओं और डायसो पर थोड़ी-थोड़ी देर बाद पानी के घूंट लेते हैं उनके बारे में बताया गया होता है कि वे कड़े परिश्रम और निरंतर प्रयासों के फ़लस्वरुप यहां तक पहुंचे हैं! निश्चित ही शारीरिक मेहनत, कम या ज़्यादा, उन्होंने की होती है। स्त्रियों को पुरुषों के मुक़ाबले ज़्यादा परेशानियां उठानी पड़ती है, इसमें भी कोई शक़ नहीं। और जिन लोगों को हाशिए पर रखा गया, जिन्हें मेहनत के बदले ग़ालियां मिलती रहीं, उनकी व्यथा तो ख़ैर हम क्या खाकर समझ पाएंगे। फ़िर भी शारीरिक मेहनत के सामने क्या सब कुछ नगण्य है!?
फ़िर तो प्रेरणा अपराधियों और आतंकवादियों से भी ली जा सकती है। संभवतः वे दूसरों से ज़्यादा मेहनत करते हैं, ख़तरे भी ज़्यादा उठाते हैं, समझौते भी शायद कम ही करते होंगे। फ़िर क्या है जिससे प्रेरणा ली जाए!? कितने लोगों ने किसी आजके आयकन को किसी लाइन में लगकर नियम-क़ायदे से अपना काम कराते देखा होगा !? आखि़र बर्थ सर्टीफ़िकेट, डैथ सर्टीफ़िकेट तो वे भी बनवाते होंगे! कैसे, कब होते हैं उनके काम? और ऐसे लोगों से प्रेरणा लेने वालों को उनसे नियम-क़ानून मानने की प्रेरणा कैसे मिल सकती है? कोई-कोई सेलेब्रिटी तो इसी बात पर नाराज़ हो जाते हैं कि उनकी तलाशी क्यों ली गई? कल यही आदमी बताएगा कि क़ानून के लिए सब बराबर हैं तो उससे क्या प्रेरणा मिलेगी, किस तरह की ताक़त मिलेगी?
प्रेरणा लेना चाहे तो आप उस आदमी से भी ले सकते हैं जिसके पास कोई ताक़त नहीं, कोई हैसियत नहीं, फ़िर भी वह, सभी ग़लत रास्तों से बचते हुए, सुविधाओं को दरकिनार करते हुए, कष्ट उठाते हुए और कुछ नए कष्टों में पड़ जाने की संभावनाओं के बीच, मीडिया और इतिहास में नाम आ जाने की कोई भी संभावना और गारंटी न होने के बावजूद भी नियम और ईमानदारी से अपना काम कराता है।
बड़ा तो उसका संघर्ष और सफ़लता है, आप और मैं उसे नहीं जानते, इसमें उसकी क्या ग़लती है?
ज़्यादातर लोग, आप और मैं भी, अपने भीतर जाकर ख़ुदको ईमानदारी से समझे तो, सफ़लता और मशहूरी चाहते ही इसीलिए हैं कि उनके बहुत सारे काम घर बैठे हो जाया करेंगे, बहुत सारे लोग जो कल तक उनसे बड़े या बराबर नज़र आते थे, अब उनसे छोटे नज़र आएंगे, उन्हें सलाम बजाएंगे, उनके चक्कर काटेंगे। सफ़लता के संघर्ष में, ईमानदारी और बेईमानी के बाद, दो और तरीक़े भी हैं। एक तो यह है कि आपके अपने कुछ विचार हैं और आप धीरे-धीरे लोगों को, दलीलें दे-देकर, उदाहरण दे-देकर, उन नए या अलग तरह के विचारों का क़ायल कर दें। या जो दूसरा पारंपरिक और आसान तरीक़ा है-जहां जाएं, जैसे वहां लोग हों, जो उनमें पहले से स्वीकृत मान्यताएं और मानसिकताएं हैं, उन्हींके अनुरुप बातें कहना शुरु करदें।
बुद्ध हों, अंबेडकर हों, ओशो हों......उनका तरीक़ा पहला तरीक़ा ही हो सकता है। और दूसरे तरीक़े से सफ़लता का आनंद लेते तो हम रोज़ाना ही लोगों को देखते हैं। तीसरे तरह का एक और संघर्ष और सफ़लता भी आप देखते होंगे। कई बार सारे प्रचार माध्यम एकाएक किसी व्यक्ति के बारे में एक इमेज बरसाना शुरु कर देते हैं कि फ़लां साब नयी सोच, नयी उम्मीद वगैरह-वगैरह लेकर आए हैं। मगर जब ध्यान से उन्हें सुनो तो समझ में आता है कि भाईसाहब बातें तो वही सड़ी-गली, पुरानी ही घसीट रहे हैं, तो नई सोच क्या ऊपर-नीचे की पट्टियों पर लिख देने, बड़े-बड़े कैप्शन्स् और ग्राफ़िक्स् में दिखा देने से हो जाएगी?
सफ़लता हो कि संघर्ष, ईमानदारी हो कि बेईमानी, शारीरिक मेहनत हो या वैचारिक चिंतन, भगवान हो कि आयकन......कोई भी इतना निरापद, सच्चा और बहस व शक़ के दायरे से इस तरह बाहर नहीं है कि उसे बिना आंखे और दिमाग़ खोलकर देखे, चुपचाप आंखें मूंदकर उसपर साइन कर दिए जाएं, उसे पास कर दिया जाए।
-संजय ग्रोवर
15-09-2013
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