नास्तिकों की हत्या करनेवालों की बेबसी और मजबूरी साफ़ समझ में आती है। क्योंकि उनके लिए यह न तो कभी संभव था और न कभी संभव हो पाएगा कि वो ईश्वर को दुनिया के सामने पेश करें और उससे दुनिया की कुछ समस्याएं हल करने को कहें। ईश्वर को पेश करने के नामुमक़िन काम की तुलना में हत्या बहुत ही आसान उपाय है। यह समस्या से भागने और दूसरों का ध्यान बंटाने का एक अनुचित मगर संभव उपाय है। आप सोचिए कि इस दुनिया के करोड़ों लोग मिलकर भी एक ईश्वर को पेश नहीं कर सकते। इसके मुक़ाबले हत्या एकदम आसान है। हर एक हत्या इस बात की पुष्टि करती है कि ईश्वर नहीं है। क्योंकि ईश्वर होता तो वह यह सड़कछाप काम अपने नाम पर कभी होने न देता। और हत्या करनेवाले को अगर ईश्वर के होने का विश्वास होता तो यह संभव ही नहीं था कि वह ईश्वर के काम को अपने हाथ में लेता। हत्या करनेवाले को ख़ुद ही किसी ईश्वर में विश्वास नहीं इसीलिए वह ख़ुद हत्या करने निकल पड़ता है और हत्या करके ख़ुश होता है। उसे इतनी भी समझ नहीं होती कि इसमें ख़ुश होने की बात किसी भी तरह से नहीं है। तू हत्या नहीं करेगा तो भी यह आदमी कभी न कभी मरेगा। तूने इसमें स्पेशल कुछ भी नहीं किया। और मज़े की बात यह है कि एक न एक दिन तू भी मरेगा। कोई न मारे तो भी मरेगा। दो-चार साल पहले या दो-चार साल बाद में मरेगा, उससे क्या फ़र्क़ पड़ता है ? इस मरने-मारने से ईश्वर का होना तो किसी भी तरह से सिद्ध नहीं होता।
इससे हर बार यही सिद्ध होता है कि ईश्वर कहीं नहीं है। न कभी था, न कभी होगा। बाक़ी इससे यह सिद्ध होता है कि हत्या करनेवाले इतने बेबस हैं और नकारात्मक सोच से इतने भरे हैं कि वे हत्या अलावा कुछ कर ही नहीं सकते।
मज़े की बात यह कि ईश्वर को तुम्ही ने बनाया, तुम्हीने प्रचारित किया, तुम्हीने उसके नाम पर खाया-पिया, स्त्रियों और दूसरे वंचितों-कमज़ोरों की दुर्दशा की, उनका दुरुपयोग किया। अब तुम्ही उस ईश्वर को पेश नहीं कर पा रहे और बौख़लाहट में हत्या किसी और की कर रहे हो !? अपनी बला तबेले के सर ! उल्टा चोर कोतवाल को डांटे ! अरे, अपनी ही बनाई-बताई चीज़ को साबित नहीं कर पा रहे तो हत्या अपनी करो। आत्महत्या करो। डूब मरने की बात तुम्हारे लिए है। दूसरे से क्या लेना !?
भैया रे, ईश्वर के नाम पर तो ईश्वर को ही पेश करना पड़ेगा, अंड-बंड हरक़तों से ईश्वर साबित नहीं होने वाला। जैसा ईश्वर तुमने बताया है वैसा अब लाकर भी दिखाओ। किसी सब्स्टीट्यूट से काम नहीं चलनेवाला। आखि़र ईश्वर है, कोई मज़ाक़ थोड़े ना है।
ईश्वर का मज़ाक मत बनाओ, उसे लाकर दिखाओ।
इससे कम पर बात नहीं बननेवाली।
-संजय ग्रोवर
(अपने फ़ेसबुक-ग्रुप 'नास्तिकThe Atheist' से)
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